• किदवईनगर विधान सभा 215 के Voters ने ओढ़ रक्खी है "खामोशी की चादर"
  • ब्राम्हण मतदाताओं पर Congress और BJP के पहलवानों की जमी हैं निगाहें
  • ब्राम्हण बाहुल इस सीट पर "चुटइयाधारी" निर्णायक भूमिका अदा करेंगे
  • मोदी लहर में महेश त्रिवेदी ने 35  हजार वोटों से दर्ज की थी चुनाव में जीत 
  • 2022 Election में न तो लहर है और न ही हिन्दू-मुस्लिम फैक्टर
  • पहले से भी अधिक डॉयन हो चुकी है कमर तोड़ मंहगाई 
  • जीत के लिए दोनों ही दिग्गज लगा रहे हैं एड़ी-चोटी का जोर 
  • अपनों की नाराजगी और भीतरघात धीरे-धीरे चरम पर 

 

     Congress प्रत्याशी अजय कपूर और BJP प्रत्याशी महेश त्रिवेदी

Yogesh Tripathi

बहुत कम लोग जानते हैं कि धुर गांधीवादी नेता रफी अहमद किदवई के नाम पर Kanpur City की पहली नियोजित आवासीय कालोनी का नाम किदवईनगर रक्खा गया था। 2017 के चुनाव में किदवई नगर विधान सभा (215) से BJP प्रत्याशी महेश त्रिवेदी ने Congress के हैट्रिक विधायक का तमगा पाए अजय कपूर को मोदी लहर में करीब 34,900 वोट से हराया था।  महेश को करीब एक लाख 11 हजार वोट मिले थे जबकि कांग्रेस और सपा के गठबंधन के प्रत्याशी रहे अजय कपूर को 77 हजार वोट मिले थे। बसपा प्रत्याशी जैकी (जो कि वर्तमान समय में अजय कपूर के साथ कांग्रेस में हैं) उनको तब 10 हजार वोट मिले थे। इस विधान सभा में ब्राम्हण मतदाता निर्णायक भूमिका में हमेशा से रहा है। 2017 के चुनाव में "चुटइयाधारियों" (ब्राम्हण वर्ग) ने अपना आशीर्वाद महेश त्रिवेदी को दिया था लेकिन 2022 के चुनाव में "चुटइयाधारी" "खामोशी की चादर" ओढ़े (Silent) है। यही वजह है कि दोनों "महारथियों" और उनके करीबी समर्थकों में खासी बेचैनी दिखाई दे रही है। विधान सभा में वैश्य मतदाताओं की संख्या भी ठीक-ठाक है। वैश्य समाज को भी भाजपा का वोट बैंक कहा जाता है लेकिन सपा ने अभिमन्यु गुप्ता को "चुनावी रण" में उतारकर चुनाव को रोचक बनाने की कोशिश की है। प्रतिष्ठा की इस सीट पर सारा दारोमदार ब्राम्हण और वैश्य मतदाताओं पर ही टिका है। खासतौर पर "चुटियाधारियों" का आशीर्वाद जिसके सिर पर मिलेगा, निश्चित तौर पर "चुनावी दंगल" का विजेता वही बनेगा। चर्चाओं की मानें तो ऐन वक्त पर कांग्रेस पर सपा "दयावान" बन सकती है। "गणेश जी" भी कमल का फूल अपनी सूंड़ में ले सकते हैं। 

जनसंपर्क के दौरान पत्रकार सुबोध शुक्ला के घर वोट मांगने पहुंचे अजय कपूर।

मतदान की प्रक्रिया को अब सिर्फ 9 दिन ही शेष बचे हुए हैं। कांग्रेस प्रत्याशी अजय कपूर और भाजपा के महेश त्रिवेदी ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत लगा रक्खी है। डिजिटल और सोशल मीडिया के जरिए भी दोनों चुनाव प्रचार को उठाए हुए हैं। लेकिन ब्राम्हण मतदाता की खामोशी ने दोनों की बेचैनी को बढ़ा रक्खा है। दोनों ही इसी समाज को अपने पाले में लाने के लिए हर जतन कर रहे हैं। दर्जन भर से अधिक कारों का काफिला लेकर विधान सभा की सड़कों पर घूम रहे महेश त्रिवेदी की कोशिश यह है कि किसी भी तरह से "चुटइयाधारियों" को अपने पाले में लाया जाए। इसके लिए वह विरोधी दल के नेताओं के परिजनों को भाजपा ज्वाइन करवाने से भी नहीं चूक रहे हैं। उधाहरण के तौर पर कांग्रेस के सांसद राजीव शुक्ला की भाभी मधु शुक्ला की कुछ दिन पहले बीजेपी की ज्वाइनिंग है। 

साइट नंबर-1 में जनसंपर्क के दौरान डीबीएस कालेज के पूर्व उपाध्यक्ष अवनीश ठाकुर के साथ अजय कपूर।

अजय कपूर दो हाथ आगे निकलकर बैटिंग कर रहे हैं। मधु शुक्ला की बीजेपी में ज्वाइनिंग के बाद उन्होंने बसपा के टिकट पर गोविंदनगर से चुनाव लड़े सचिन त्रिपाठी, 2017 में किदवईनगर से बसपा प्रत्याशी रहे जैकी और डीबीएस कालेज के पूर्व महामंत्री विमलेश पांडेय को कांग्रेस ज्वाइन कराने में सफल रहे। इन तीनों नेताओं ने प्रमोदी तिवारी की मौजूदगी में कांग्रेस की सदस्यता ली। इन तीनों ही नेताओं का विधान सभा में जनाधार है। हालांकि जिस तरह से भाजपाइयों ने मधु शुक्ला के ज्वाइनिंग की ब्रांडिंग सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया में की, उस तरह से कांग्रेस तीन लोगों की ज्वाइनिंग की ब्रांडिंग ठीक ढंग से नहीं कर सकी।

 

बीजेपी प्रत्याशी महेश त्रिवेदी का मुंह मीठा कराने के बाद जीत का आशीर्वाद देती महिलाएं। (फोटो साभार फेसबुक)

अपनों को संभालने में छूट रहा है पसीना

बीजेपी प्रत्याशी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत कुछ अपने बने हुए हैं। अपनों की नाराजगी दूर करने में ही प्रत्याशी और उनके चुनाव संचालकों व संयोजकों को पसीना छूट रहा है। नाराज होने वाले अपनों की संख्या एक-दो नहीं बल्कि कई की है। इसमें कुछ ने तो बाकायदा कांग्रेस प्रत्याशी अजय कपूर के पक्ष में चुनावी माहौल बनाना भी Start कर दिया है। कई मीटिंग आयोजित की जा चुकी हैं। नाराजगी अभी तक दूर नहीं हो सकी है। मान-मनौव्वल का क्रम जारी है। राजनीति के पंडितों की मानें तो यह बड़ा एडवांटेज कांग्रेस प्रत्याशी के लिए साबित हो सकता है।  इन सब के उलट एक और तस्वीर जो Portal की छानबीन में आई है वो है भीतरघात। चर्चाओं की मानें तो वोटिंग की तारीख नजदीक आते-आते भीतरघातियों की संख्या और बढ़ सकती है। उदाहरण के तौर पर DBS College छात्रसंघ के एक दिग्गज नेता और पूर्व प्रेसीडेंट को इस समय सपने में अक्सर अटल जी आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनकी पोस्ट काफी चर्चित हो रही है। इन्होंने पिछला चुनाव महेश त्रिवेदी को लड़ाया था लेकिन इस बार वह दूर हैं। 

 

जनसंपर्क के दौरान मतदाता को फूल-माला पहनाकर स्वागत करते हुए भाजपा प्रत्याशी महेश त्रिवेदी।

किदवईनगर विधान सभा का वोटर्स Silent 

विधान सभा के अधिकांश मोहल्लों और बस्तियों में कोई भी मतदाता कुछ भी बोलने से साफ-साफ बच रहा है। किसका जोर है...? किसको वोट करेंगे ...? कांग्रेस या फिर बीजेपी ....? वह इन प्रश्नों पर बिल्कुल खामोश है। बोलने से साफ मना कर देता है। सिर्फ इतना कहता है कि जो अच्छा होगा, हम वोट उसी को करेंगे। मतदान तो गुप्त होता है, उसे बताया नहीं जाता है। कोई प्रत्याशी आपके घर आया कि नहीं ...? मतदाता यह तक बताने को तैयार नहीं है। अच्छा तो ये बताओ कि यहां पर किस प्रत्याशी का जोर है...? इस सवाल पर इक्का-दुक्का लोगों ने अजय कपूर और महेश दोनों का ही नाम लिया। कुछ ने कहा कि 50-50 है तो कोई बोला कि 60-40 है। मतदाता के खामोश होने से जहां चुनाव का मिजाज समझ में नहीं आता है तो दूसरी तरफ यह आशंका भी बनी रहती है कि आखिरी समय "ऊंट किस करवट बैठेगा..." ? हालांकि राजनीति के जानकर किदवईनगर सीट पर कांटे की टक्कर मान रहे हैं लेकिन सभी का मत है कि नाराज मतदाता ही 2022 में बड़ा चुनावी गुल खिलाएगा। 



"चुटइयाधारियों" को संभालना सबसे बड़ी चुनौती 

महेश त्रिवेदी को यदि सीट अपने पास बरकरार रखनी है तो "चुटइयाधारियों" को अपने पाले में लाना ही होगा। नाराज ब्राम्हण मतदाता यदि छिटका तो सीधा नुकसान होगा। वहीं अजय कपूर का भी प्रयास यही है कि जो नाराज ब्राम्हण मतदाता को हर हाल में अपनी तरफ खींचने में कामयाब हों। क्यों कि दोनों को मालुम है कि "चुटइयाधारिय़ों" के आशीर्वाद बगैर "चुनावी रण" को जितना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। गौरतलब है कि ब्राम्हणों में एक वर्ग ऐसा भी है जो योगी सरकार के खिलाफ पिछले कुछ महीने से अधिक मुखर रहा है। इस वर्ग ने सोशल मीडिया पर लगातार अभियान छेड़ रक्खा है। इस लिए कयास लगाए जा रहे हैं कि आखिर नाराज ब्राम्हण का ऊंट आखिर किस तरह करवट लेगा। कांग्रेस प्रत्याशी या फिर भाजपा प्रत्याशी के पाले में ...? यह 20 मार्च को मतगणना के बाद ही मालुम चल सकेगा। 


महेश संग गाड़ियों का काफिला तो स्कूटी से निकल रहे अजय कपूर

चुनाव हो और भौकाल न दिखाई दे, ऐसा हो नहीं सकता। बीजेपी प्रत्याशी महेश त्रिवेदी चुनाव प्रचार में पूरी तरह से गर्दा उड़ाए हुए है। कई कारों का काफिला उनके साथ चलता है। इसमें उनके दर्जनों समर्थक मौजूद रहते हैं। रोड-शो करने से भी महेश त्रिवेदी बिल्कुल पीछे नहीं हटते। वहीं दूसरी तरफ अजय कपूर एक या फिर दो गाड़ी से चुनाव प्रचार में निकल रहे हैं। कई बार तो वह दुपहिया वाहन खुद ड्राइव कर कार्यकर्ताओं के घर पहुंचे। वन-टू-वन मीटिंग में अजय कपूर फिलहाल भाजपा प्रत्याशी से काफी आगे हैं। 

परिवारीजनों ने संभाल रक्खी है चुनाव की कमान 

महेश त्रिवेदी के चुनाव प्रचार की कमान जहां उनकी पत्नी और बेटे ने भी संभाल रक्खी है। एक टीम पत्नी लेकर निकलती हैं तो दूसरी टीम को उनका बेटा शुभम त्रिवेदी लीड कर चुनावी प्रचार में रहते हैं। यही हाल अजय कपूर का भी है। उनकी भी पत्नी चुनाव प्रचार में कूद चुकी हैं। डोर-टू-डोर वह मतदाताओं के घर पहुंचकर वोट मांग रही हैं। अजय कपूर के भाई भी चुनावी रणनीति में लगे हुए हैं। 

झगड़े की आशंका से भी सहमें है समर्थक

2017 का चुनाव हर किसी को याद है। वोटिंग वाले दिन अजय कपूर और महेश त्रिवेदी के समर्थकों के बीच गोविंदनगर में झगड़ा हुआ था। जानकारों और सूत्रों की मानें तो इस चुनाव में भी आशंका बनी हुई है। क्यों कि स्लेजिंग और हूटिंग का दौर जारी है। आंखे दिखाने और गर्दन हिलाने का काम भी चल रहा है। www.redeyestimes.com (News Portal) से बातचीत में कुछ लोगों ने कहा कि वोटिंग के दिन तक चुनाव में मारपीट और झड़प की आशंका बनी रहेगी। आशंकाएं कई और भी हैं। चुनाव के आखिरी दौर में सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के जरिए "चुनावी वॉर" को तेज धार देने की भी आशंका बनी हुई है। 


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