- देहरादून में ब्रम्हलीन हो गए श्रीआनंदेश्वर मंदिर के महंत श्यामगिरी
- गुरु-शिष्य परंपरा के तहत बाबा घाट पर शिष्य करते हैं अंतिम कर्म
- जूना अखाड़े की तरफ से पत्र जारी कर महंत श्यामगिरी की समाधि देने की घोषणा
- बवाल और सुरक्षा के मद्देनजर जूना अखाड़े ने फोर्स की मांग भी पत्र में की
- श्याम गिरी के शिष्य रामदास उर्फ अमरकंटक गुरु भाइयों के साथ करना चाहते हैं अंतिम संस्कार
- अमरकंटक ने जूना अखाड़े पर लगाया पुलिस और प्रशासन से साठगांठ का आरोप
Yogesh Tripathi
करीब 27 साल से श्रीआनंदेश्वर मंदिर (परमट) कानपुर के महंत की गद्दी पर विराजमान श्यामगिरी महाराज ने Sunday की सुबह उत्तराखंड के देहरादून में अंतिम सांस ली। उनके ब्रम्हलीन होने की खबर मिलते ही शोक की लहर दौड़ गई। मंदिर प्रशासन की तरफ से महंत के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा गया कि 31 अगस्त तक श्रीआनंदेश्वर मंदिर के पट बंद रहेंगे। इन सबके बीच एक पुराने विवाद का "जिन्न" फिर बोतल से बाहर आ गया। यह "जिन्न" मंदिर के मंहत की गद्दी को लेकर है। करीब 225 वर्ष पुराने श्रीआनंदेश्वर मंदिर के महंत की गद्दी उसके शिष्य को दिए जाने की परंपरा हमेशा से रही है। इतना ही नहीं महंत के ब्रम्हलीन होने पर उनके शिष्य बाबा घाटम पर अंतिम क्रिया कर्म कर उनको समाधि देते हैं। साथ ही महंत की मूर्ति भी स्थापित की जाती है। तमाम से महंतों की मूर्ति स्थापित भी है।
www.redeyyestimes.com (News Portal) की छानबीन में पता चला है कि इस बार संभवतः गुरु-शिष्य की परंपरा को खत्म करने का "ब्लूप्रिंट" तैयार किया जा चुका है। इस बात की पुष्टि खुद श्यामगिरी महाराज के परम शिष्य अमरनाथ उर्फ कंटक महाराज ने News Portal के साथ बातचीत में की। कंटक महराज ने श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े पर तमाम आरोप लगाते हुए कहा कि ऐसा मंदिर पर कब्जा करने की नीयति से किया जा रहा है। चोरी के इल्जाम में पहले उन्हें गुरु भाइयों के साथ जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया गया फिर महंत को कैप्चर करके रक्खा गया। उन्हें न तो अपने गुरु श्यामगिरी से मिलने दिया गया और न ही उनके निधन की सूचना दी गई। अब जूना अखाड़े के लोग उन्हें और उनके गुरु भाइयों को अपने गुरु का अंतिम संस्कार भी रीति-रिवाज और परंपरा के अनुसार नहीं करने दे रहे हैं।
ब्रम्हलीन महंत चतुरगिरी के शिष्य श्यामगिरी के कई शिष्य थे। इसमें अमरदास उर्फ कंटकट महराज, महंत चैतन्य गिरी, (ये कृपा पात्र शिष्य थे), केवल गिरी, कुरुक्षेत्र गिरी, स्वर्गीय करन गिरी, महंत बाबू गिरी, महंत आजाद गिरी प्रमुख हैं। मथुरा जनपद के निवासी ब्रम्हलीन महंत श्यामगिरी पहले गृहस्थ थे। श्यामगिरी के कोई बेटा नहीं था सिर्फ तीन बेटियां ही थीं। मथुरा में ब्याही बेटी संगीता का निधन हो चुका है। दूसरी बेटी आगरा में और तीसरी बेटी पूनम कानपुर में ब्याही है।
मंदिर की गुरु-शिष्य परंपरा के मुताबिक श्यामगिरी के चेलों को न सिर्फ उनके अंतिम संस्कार करने का अधिकार प्राप्त है बल्कि मंदिर के महंत की कुर्सी पर भी किसी एक शिष्य को बैठने का अधिकार है। यह परंपरा करीब 200 साल पुरानी है और अनवरत चली आ रही है। अमरदास उर्फ कंटक महराज का कहना है कि जूना अखाड़े का इस मंदिर से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। 10-20 रुपयों के फर्जी स्टांप पेपरों पर जूना अखाड़े ने तमाम मनगढ़ंत कहानियां रच रक्खी हैं। इसका पर्दाफाश जल्द ही जिला प्रशासन के अधिकारियों के समक्ष किया जाएगा। Social Media पर कंटक महराज का एक Video भी वायरल हो रहा है जिसमें वह साफ-साफ सभी आरोप जूना अखाड़े पर लगाते हुए कह रहे हैं कि उनके गुरु की रहस्यमयी मौत का जिम्मेदार जूना अखाड़ा है। यह वीडियो पोर्टल के पास मौजूद है।
उधर, जूना अखाड़े की तरफ से एक पत्र WhatsApp ग्रुपों में पोस्ट किया गया। जिसमें महंत श्यामगिरी के निधन की जानकारी देने के साथ पत्र में यह भी लिखा गया है कि हरिद्वार में जूना अखाड़े के साधु परंपरा के मुताबिक 13 अखाड़ों के साधु-सन्यासी उनको पुष्पांजलि अर्पित करेंगे। पत्र में यह भी लिखा है कि शाम तक श्यामगिरी का पार्थिव शरीर कानपुर पहुंचेगा। 30 अगस्त को श्यामगिरी की शोभा यात्रा मंदिर परिसर से बाबा घाट तक ले जाई जायेगी। पत्र की अंतिम लाइन में लिखा है कि सुरक्षा एवं शांति बनाए रखने के लिए पुलिस बल अति आवश्यक है।
अब देखना यह है कि कानपुर की पुलिस और जिला प्रशासन क्या रुख अख्तियार करता है..? सिर्फ जूना अखाड़े का पक्ष सुनेगा या फिर लंबे समय से मंदिर में मंहत श्यामगिरी के साथ साए की तरह रहने वाले उनके शिष्यों की ...? प्रशासन क्या गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वाहन करवाएगा या फिर जूना अखाड़ा के लोग ही श्यामगिरी का अंतिम संस्कार करेंगे।
श्रीआनंदेश्वर मंदिर (परमट) कानपुर के गुरु-शिष्य परंपरा को चार्ट के जरिए समझिए------
चार्ट नंबर-2------
चार्ट नंबर-3-----
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