TRENDING NOW

  • मंगलवार सुबह करीब एक घंटा विलंब से Start हुई वोटिंग प्रक्रिया 
  • DAV College में कड़ी सुरक्षा के बीच अधिवक्ताओं ने किया मतदान
  • बुधवार सुबह 11 बजे से अध्यक्ष और महामंत्री पद की होगी काउंटिंग
  • अलग-अलग पदों पर 74 प्रत्याशी अजमा रहे हैं अपनी किस्मत 
  • 15 बूथों पर 5755 अधिवक्ताओं ने की "वोट की चोट"


Yogesh Tripathi

Kanpur में लॉयर्स एसोसिएशन का चुनाव मंगलवार को कड़ी सुरक्षा के बीच संपन्न हो गया। पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था काफी कड़ी थी। डीएवी कॉलेज परिसर में हो रही मतदान प्रक्रिया के मद्देनजर कचहरी और आसपास की सड़कों पर पुलिस प्रशासन की तरफ से बैरीकेडिंग की गई थी। प्रत्याशी के समर्थक हवा में पर्चियां उड़ाकर सुबह से शाम तक वोट मांगते रहे। उमस भरी चिपचिपी गर्मी से प्रत्याशियों और उनके समर्थकों का हाल बेहाल रहा। 5755 अधिवक्ताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। वोटिंग प्रक्रिया के बाद देर शाम कचहरी में महामंत्री पद के प्रत्याशी Rajeev Yadav ने सर्मथकों के साथ मतदाताओं का आभार व्यक्त किया। बुधवार सुबह 11 बजे अध्यक्ष और महामंत्री पद पर काउंटिंग प्रक्रिया Start होगी। दोपहर बाद से रुझान और देर रात्रि तक चुनाव परिणाम आने की उम्मींद है।


COP Card की मूल प्रति & QR Code Slip के बगैर किसी भी अधिवक्ता को मतदान केंद्र के अंदर प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी।  तमाम Voter's जब COP Card की मूल प्रति & QR Code Slip की फोटो कॉपी लेकर वोट करने पहुंचे थे लेकिन उन्हें वोट नहीं डालने दिया गया। कुछ अधिवक्ताओं ने मिन्नतें भी की लेकिन वे फिर भी वोट नहीं डाल सके। 


मंगलवार को तीन बजे तक लॉयर्स चुनाव में सिर्फ 40 प्रतिशत ही मतदान हो सका था लेकिन उसके बाद अधिवक्ताओं की मतदान केंद्र पर अचानक भीड़ बढ़ने लगी। शाम साढ़े पांच बजे तक 74 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। चूंकि मतदान प्रक्रिया करीब एक घंटा देरी से शुरु हुई थी, इस लिए शाम को आधा घंटा अतिरिक्त समय मतदान के लिए दिया गया। एल्डर्स कमेटी के चेयरमैन रवि मोहन कटियार के मुताबिक 7765 मतदाताओं में 5755 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। 2010 मतदाताओं ने वोट नहीं डाले। 

बीमार और बुजुर्ग मतदाताओं को कुछ प्रत्याशी अपने वाहनों के जरिए मतदानस्थल तक ले गए।  खास बात ये रही कि मतदान के दौरान मोबाइल ले जाने पर पूरी तरह से रोक थी। गोरा कब्रिस्तान और आसपास प्रत्याशियों ने अपने बस्ते सजाए थे। समर्थक करीब 100 मीटर की दूरी पर खड़े होकर हवा में पर्चियां उड़ाते हुए प्रत्याशी के लिए वोट मांगते  नजर आए। किसी भी बवाल के मद्देनजर पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए थे। कई थानों की फोर्स के साथ-साथ रिजर्व पुलिस बल को भी तैनात किया गया था। 

  • 30 जुलाई को होगी नामांकन पत्रों की जांच
  • नामांकन वापसी की तारीख 31 जुलाई है मुकर्रर
  • खाकी की कड़ी निगरानी के बीच प्रत्याशियों ने भरा पर्चा 
  • "चुनावी टेंडर" के "ठेकेदारों" ने Election से बनाई दूरी
  • कचहरी में खाकी और खुफिया का "पहरा" रहा "गहरा"

Yogesh Tripathi

The Lawyers Association Election 2025  (Kanpur) की नामांकन प्रक्रिया मंगलवार को पूरी हो गई। अध्यक्ष पद पर 6, महामंत्री पद पर 8 प्रत्याशियों ने नामांकन पत्र दाखिल किए। वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद पर 5 प्रत्याशी, कनिष्ठ उपाध्यक्ष में 7, कोषाध्यक्ष पद में 4, संयुक्त मंत्री प्रशासन पद में 9, संयुक्त मंत्री प्रकाशन पद में 3, वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य पद में 10, कनिष्ठ कार्यकारिणी पद में 17 प्रत्याशियों ने नामांकन कराया। 


नामांकन प्रक्रिया के दौरान एल्डर्स कमेटी के सदस्य देवनाथ शुक्ला , रामप्रताप सिंह चौहान, प्रबल प्रताप सिंह यादव (सभी अधिवक्ता) एवं राजेश कुमार यादव (अधिवक्ता/मुख्य चुनाव अधिकारी), और अधिवक्ता अरुण तिवारी मौजूद रहे। सभी नामांकन पत्र श्रीराम कुमार शुक्ला हाल में एल्डर्स कमेटी के चेयरमैन श्री रवि मोहन कटियार (अधिवक्ता) की अध्यक्षता में लिए गए। एल्डर्स कमेटी ने सभी प्रत्याशियों से एक शपथ पत्र इस आशय के तहत लिया है कि चुनाव आचार संहिता का पालन पूर्ण रूप से हो। 

30 जुलाई को नामांकन पत्रों की जांच की जाएगी और 31 जुनाई को प्रत्याशी अपना नाम वापस ले सकते हैं। मंगलवार को नामांकन के दौरान पुलिस के साथ-साथ खुफिया भी काफी सतर्क रही। प्रत्याशियों ने समर्थकों के साथ नारेबाजी करते हुए जुलूस निकाला लेकिन इस बार नजारा कुछ "जुदा-जुदा" सा था। 



"चुनावी टेंडर" के "ठेकेदार" पुलिस की सख्ती के आगे इस बार बेबस और लाचार नजर आए। करीब-करीब सभी ने इस बार के चुनाव से दूरी बना रक्खी है। समर्थकों ने नारेबाजी तो की लेकिन हर बार जैसा हो-हुल्लड़ नहीं हुआ। Out Sider की भीड़ भी इस बार काफी कम रही। प्रत्याशी अपने समर्थकों के बीच सिर्फ लंच पैकेट, फल-फ्रूट और पानी की बोतल ही बांट सके। "रंगीन पानी" की बोतल का वितरण इस चुनाव में खुले तौर पर नहीं हो पा रहा है। सबकुछ पर्दे के पीछे से संचालित है। 

चुनावी तस्वीर बिल्कुल भी साफ नहीं है। हर पद पर घमासन मचा मचा है। अध्यक्ष पद पर अरविंद कुमार दिवेदी मजबूती से डटे हुए हैं। राकेश सचान और अरविंद कुमार दीक्षित उन्हें चुनौती देते नजर आ रहे हैं। दिनेश चंद्र वर्मा और सैय्यद सिकंदर आलम अध्यक्ष पद के चुनाव को दिलचस्प बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। News Portal से बातचीत के दौरान कुछ सीनियर्स अधिवक्ताओं ने कहा कि चुनाव की असली तस्वीर अगले तीन से चार दिन में साफ होती नजर आएगी।  उसके बाद ही मालूम चलेगा कि सीधी फाइट होगी या फिर चुनाव त्रिकोणीय बनेगा। अभी कुछ भी कहना गलत है। 



महामंत्री पद का नजारा सबसे अलग है। इस पद पर 8 प्रत्याशियों ने नामांकन पत्र भरा है। 2024 के चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे राजीव यादव इस बार और मजबूती से चुनाव में खड़े हैं। राजीव यादव ने वर्ष 1999 में डी.सी ऑफ लॉ कालेज के अध्यक्ष का चुनाव जीता था।  सुनील पांडेय उनको टक्कर दे रहे हैं। 2024 के चुनाव में सुनील पांडेय तीसरे नंबर पर थे। अभय शर्मा और नवनीत कुमार पांडेय चुनाव का पूरा माहौल बनाए हुए हैं। चुनावी "शोर" देशबंधु तिवारी का भी  है। 



संयुक्त मंत्री प्रकाशन में भानु प्रताप सिंह चौहान को अभिषेक चौरसिया और आलोक कुमार दुबे चुनौती दे रहे हैं। जबकि संयुक्त मंत्री पुस्तकालय के पद पर प्रेम शंकर मिश्रा को तरुण कुमार कुशवाहा, जसविंदर सिंह, शशि गौतम और वरुण यादव से चुनौती मिल रही है। अन्य पदों पर भी प्रत्याशी अपनी जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं। अंदर की खबर ये है कि पुलिस, प्रशासन और खुफिया न सिर्फ सतर्क हैं बल्कि "पहरा काफी गहरा" किए हुए हैं। यही वजह है कि The Lawyers Association Election 2025  (Kanpur) में सूई पटक सन्नाटा है। 


  • संदीप पासी उर्फ इमरान उर्फ इब्राहिम पर घोषित था 50 हजार का इनाम
  • 2017 में Kanpur Dehat पुलिस ने की थी गैंगस्टर की कार्रवाई
  • शातिर ने फतेहपुर के बिन्दकी में ले रक्खी थी पनाह
  • फतेहपुर में शहीदुनिशा नाम की मुस्लिम महिला से किया निकाह


Yogesh Tripathi

उत्तर प्रदेश स्पेशल टॉस्क फोर्स (UPSTF) ने लंबे समय से गैंगस्टर एक्ट के मामले में फरार चल रहे शातिर बदमाश को Arrest कर लिया। संदीप पासी उर्फ इमरान उर्फ इब्राहिम नाम के इस बदमाश पर 50 हजार रुपए का इनाम घोषित था। पूछताछ में शातिर ने बताया कि पुलिस से बचने के लिए उसने अपना नाम इरफान रख लिया और फतेहपुर जनपद की बिंदकी तहसील में पनाह ले ली। यहां पर उसने शदीदुनिशा नाम की मुस्लिम महिला से निकाह भी कर लिया। पुलिस की निगाह से बचने के लिए गैंगस्टर सब्जी की बिक्री भी करने लगा। पूछताछ के बाद उसे कोर्ट में पेश किया गया। जहां से न्यायिक अभिरक्षा में कोर्ट ने जेल भेज दिया।


ADG (Zone), Kanpur आलोक सिंह, IG (Range), Kanpur जोगेन्द्र कुमार के मार्गदर्शन में SP (Kanpur Dehat) अरविन्द मिश्र के के निर्देश पर जनपद में अपराधों की रोकथाम, खुलासे, वांछित एंव पुरस्कार घोषित अपराधियों की Arresting के लिए चलाए जा रहे विशेष अभियान के क्रम में थाना गजनेर पर पंजीकृत मुकदमा अपराध संख्या 128/2017 धारा 3(1)  UP Gangster (Act)) एक्ट में वांछित अभियुक्त सन्दीप पासी उर्फ इब्राहिम उर्फ इमरान पुत्र विनोद कुमार उर्फ टिकई मूल पता खजूर गाँव थाना लालगंज जनपद रायबरेली हाल पता ग्राम दरवेशाबाद थाना बिन्दकी जनपद फतेहपुर गिरफ्तारी न हो पाने के कारण IG (Range) Kanpur ने इनाम की राशि बढ़ाकर 50 हजार रुपए कर दिया। शनिवार को STF (Inspector) घनश्याम यादव की अगुवाई में टीम ने गजनेर पुलिस की मदद से मुखबिर की सूचना पर संदीप पासी उर्फ इब्राहिम उर्फ इमरान को Kanpur Dehat के गजनेर थाना एरिया स्थित जिठरौली तिराहे पर बने प्रतीक्षालय के पास घेराबंदी के बाद धर दबोचा।


STF की पूछताछ में गैंगस्टर सन्दीप पासी उर्फ इब्राहिम ने बताया कि वो अपने साथी सुशील कुमार गुप्ता पुत्र बरातीलाल निवासी 101/325 S-ब्लाक किदवई नगर कानपुर नगर, अल्ताफ पुत्र रामस्वरूप निवासी मल्लावां थाना बड्डूपुर जनपद बाराबंकी, छोटे गौतम उर्फ नन्द किशोर पुत्र रामऔतार कुरील निवासी बैरी सवाई थाना शिवली जनपद कानपुर देहात और  सुशील गौतम पुत्र बाबूराम निवासी चौराई थाना बिधनू जनपद कानपुर नगर आदि के साथ लंबे समय से शराब की तस्करी करता था। नौ साल पहले सभी को पुलिस ने Arrest कर जेल भेजा था। 


संदीप पासी के मुताबिक जेल से जमानत पर छूटने के बाद जब उसे पता चला कि पुलिस ने उस पर गैंगेस्टर एक्ट की कार्रवाई की है तो पुलिस से बचने के लिए उसने अंडरग्राउंडहोने का ब्लूप्रिंट बनाया। मूल पता ग्राम खजूरगाँव से निकल कर भिन्न-भिन्न स्थानों पर संदीप पुलिस से छुपता रहा। बकौल संदीप करीब 8 साल पहले फतेहपुर जनपद की तहसील बिंदकी के ग्राम दरवेशाबाद शहीदुनिशा नाम की महिला से निकाह कर लिया और पहचान छुपाने की नियत से अपना नाम इब्राहिम उर्फ इमरान रख लिया।


इस बीच संदीप पासी सब्जी बेचने का काम करने लगा ताकि लोगों और पुलिस की निगाह से बच सके। STF (Inspector) घनश्याम यादव के मुताबिक शनिवार को संदीप पासी उर्फ इब्राहिम अपने गिरोह के सदस्यों से मिलने के लिए गजनेर पहुंचा था। STF की टीम को मुखबिर के जरिए उसके मौजूदगी की खबर मिली तो गजनेर पुलिस की मदद से टीम ने उसकी गिरफ्तारी के लिए जाल बिछाया। टीम को देख जब उसने भागने की कोशिश की तो घेराबंदी कर दबोच लिया गया।

गैंगस्टर को Arrest करने वाली टीम में STF (Inspector) घनश्याम यादव, Inspector आशुतोष कुमार त्रिपाठी, गजनेर थाने के प्रभारी निरीक्षक प्रवीन कुमार यादव, SSI यतेंद्र कुमार यादव, SI राजेश कुमार वर्मा, HC कुलदीप सिंह, दिलीप सिंह, शिवभोला शुक्ला, राजेश कुमार, कांस्टेबल अंकुर अहलावत और STF टीम के चालक रईस भी शामिल रहे।

गैंगस्टर संदीप पासी उर्फ इब्राहिम का अपराधिक इतिहास

1. मु.अ.सं. 128/2017 धारा 3(1) गैंगस्टर एक्ट थाना गजनेर जनपद कानपुर देहात।

2. मु.अ.सं. 334/2016 धारा 420/467/468/471/272/273 भा..वि. 60(2)/72 आबकारी अधिनियम व 63 कापी.एक्ट थाना गजनेर जनपद कानपुर देहात।

3. मु.अ.सं. 293/2019 धारा 174-A भा.द.वि. थाना गजनेर जनपद कानपुर देहात

  • कुसुमा नाइन को बिगाड़ने में माधो की माँ की रही अहम भूमिका 
  • कुसुमा जब घर से भागी तो सारा जेवरात भी अपने साथ बटोर ले गई 

Dr. Rakesh Dwivedi

(Orai), Bundelkhand


टिकरी में कुसुमा नाइन और माधो मल्लाह के घर अगल -बगल थे। दीवार से दीवार मिली हुईं थी। दोनों घरों के बीच रिश्ता भी अच्छा था। एक समय कुसुमा और माधो के पिता एक साथ खेतों से जानवरों के लिए हरियाली लेने जाते थे। कुसुमा माधो के माँ की मुंह लगी हुई थी। कभी-कभी तो वह उसके घर पर ही सो जाती थी। चौथी में कुसुमा जब विदा होकर घर आई तो वह सोने -चाँदी के गहनों से लदी थी। यह देख माधो की माँ के मन में लालच आ गया और वह कुसुमा के गहनों को पाने की चाह में तानाबाना बुनने लगी। 

उस वक्त टिकरी में सरकारी प्राइमरी स्कूल था। कुसुमा यहीं पर कक्षा पांच तक पढ़ी। माधो ने हाईस्कूल तक पढ़ाई कुठौद से की और 11वीं में दाखिला जखा के कॉलेज में लिया पर फिर पढ़ नहीं पाया। मुंह में चेचक के दाग वाला माधो शरीर से काफी हट्टा कट्टा था। दोनों परिवार पड़ोसी थे और संबंध भी बिल्कुल घर जैसे। एक समय ऐसा भी रहा कि डरु नाई और सुन्दरलाल मल्लाह एक साथ खेतों पर जानवरों के लिए हरियाली लेने जाते थे। गाँव वालों ने उन दोनों का नाम हरैरया (हरी फसल चुराने वाले) रख दिया था। दोनों लोग शातिर थे और रात में किसानों के खेत की फसल को ऊपर-ऊपर से काटका अपने जानवरों को खिलाते थे। पूरा गाँव डरु और सुंदर की इस चोरी से त्रस्त था।


कुसुमा माधो से उम्र में छोटी थी। उसका ज्यादा समय माधो की माँ के साथ बीतता। कुछ समय बाद माधो कुसुमा के प्रति  आकर्षित होने लगा। सहमति कुसुमा की ओर से भी मिली। कुसुमा जब खेतों से हरियाली लेने जाती तो माधो भी उसके साथ पीछे-पीछे जाकर मदद करता और बातें होती रहती।

दोनों का ये संबंध जब गाँव वालों की नजरों में आने लगा तो डरु ने कुरौली में केदार उर्फ रूठे के साथ 1977 (रूठे के अनुसार 1976) में शादी कर दी। डरु के मुकाबले रामेश्वर नाई ज्यादा बड़े आदमी थे। शादी में खूब जेवरात चढ़ाये गए। कुसुमा जब चौथी पर पहली बार अपने मायके आई तो वह सोने चाँदी के आभूषणों से सिर से पैर तक लदी हुई थी। यह देख माधो की माँ की नीयत खराब हो गई। उसके दिमाग में कुसुमा के आभूषण ही घूमते रहते। वह खुद चाहने लगी कि कुसुमा को लेकर माधो भाग जाए।


चौथी के बाद कुसुमा का ज्यादा समय माधो की माँ के पास बीतता। कुसुमा की माँ सावित्री ने कई बार टोका भी पर कुसुमा नहीं मानी। माधो की माँ का साथ पाकर कुसुमा का मन अस्थिर रहने लगा। उधर माधो को भी उकसाया जाने लगा कि गौना चलने के पहले ही कुसुमा को भगा ले जाया जाए।  गर्मी के दिनों की बात है। सन 1978 था। माधो ने दीवार में बाँधकर रस्सी लटका दी। आँगन में अकेले सो रही कुसुमा छत के सहारे नीचे आ गई। घर से भागते वक्त वह अपने साथ सारा जेवरात भी ले गई। इसके बाद वह जेवरात कभी ससुराल वालों तक नहीं पहुँच सका। जिन गहनों को लेकर माधो की माँ ललचा गई थी, बाद में उन्हें गोहानी से प्राप्त करने में जुट गई। विक्रम से उसकी नातेदारी थी और कुसुमा को लेकर माधो ने उसी के घर में शरण ली थी। कुछ दिनों बाद डरु किसी प्रकार कुसुमा को वापस लाया पर जेवरात नहीं मिल पाये।

  • दिल्ली पुलिस ने छापा डाल तीन को पकड़ा लेकिन माधो नहीं पकड़ा जा सका
  • डरु के पक्ष में गवाह बने टिकरी के तीनों ग्रामीणों को विक्रम ने ने मार दिया था 


Dr.Rakesh Dwivedi

(Orai), Bundelkhand

गिरोह के पास कुरौली में  रामेश्वर नाई के घर लूटपाट में जो सामान मिला था उसके समाप्त होने पर औरैया के नौरी गाँव में डकैती डाली गई। धोखे से विक्रम की गोली से कुसुमा घायल हुई थी। उसका इलाज कराने को माधो के अलावा उसका पिता सुन्दर लाल और बड़ा भाई धर्मजीत दिल्ली गए। उन्हें गाँव की ही कुंजीलाल मल्लाह के बेटे कढ़ोरे ने किराए पर कमरा दिला दिया। इनके साथ कुसुमा को देख उसका माथा ठनका। तब उसने डरु को चिट्ठी लिखकर सारी जानकारी दी थी। इसके बाद ही कुसुमा को पकड़ा गया और उसे जेल जाना पड़ा। जेल से छूटकर कुसुमा नाइन माधो के साथ गिरोह में शामिल हो गई थी।


कुसुमा की कहानी 1978 से 1980 के बीच झूलती है। जेल से छूटने के बाद कुसुमा ने बीहड़ में रहने की जिंदगी कुबूल  कर ली। इटावा जेल जाने से पहले डरु और थानाध्यक्ष ने खूब समझाया पर कुसुमा ने किसी की नहीं सुनी। उसने अपनी आँखों में मोहब्बत की पट्टीबाँध रखी थी। फिर तो वह चौखट पर लौटने लायक नहीं बची। बंदूक के साथ वह अपनी कहानियाँ बनाती रही। 24 साल बाद जाकर उसे हथियार रखना ही उचित लगा।

कुसुमा नाइन किशोरावस्था में गाँव के ही जिस माधो मल्लाह के प्रेमजाल में फँस गई थी, उसका पिता सुन्दरलाल और बड़ा भाई धर्मजीत मल्लाह तो  पहले से ही अपराध की दुनिया में थे। सुन्दरलाल के पास उस वक्त यमुना के करमुखा घाट का ठेका था। दिन में वह राहगीरों को नदी पार कराता और रात में डकैतों के गिरोह को नाव पर ढोकर उन्हें किनारे पहुंचाता। कभी-कभी वह विक्रम मल्लाह के साथ डकैती भी डालने चला जाता। 

नौरी में डकैती डालते वक्त जब कुसुमा घायल हुई तो उसे इलाज के लिए सुन्दरलाल, धर्मजीत और माधो दिल्ली ले गए। उस वक्त गाँव के ही कुंजीलाल मल्लाह का लड़का कढ़ोरे श्रीनिवासपुरी में रहकर बिजली का काम करता था। सुन्दरलाल ने उसके पास जाकर रहने की जगह मांगी। कढ़ोरे ने पास में ही किराए पर कमरा दिलाकर एक बिस्किट फैक्ट्री में काम भी दिला दिया।

एक दिन कढ़ोरे उनके कमरे में गया। वहाँ जाकर देखा कि कुसुमा भी इनके साथ में है और पैर में पट्टी बाँध रक्खी है। तब कढ़ोरे ने पूछा, कि तुम्हारे पैर में क्या हो गया है...? कुसुमा बोली, पैर में विषैला फोड़ा हो गया था। घर पर ठीक न हुआ तो पिताजी ने सुन्दर चाचा के साथ इलाज के लिए यहाँ भेज दिया। अब यहाँ आराम मिला है। कुसुमा असली बात छिपा गई। कुसुमा का जवाब सुनकर कढ़ोरे अपने कमरे चला आया। अब उसके मन में उथल-पुथल मचने लगी। 

उसके मन में प्रश्न उभरा कि सुन्दर तो मेरी जाति के हैं। उस पर पिता-पुत्र सब के सब अपराधी प्रवृत्ति के हैं। इनके साथ डरु चाचा ने अपनी जवान बेटी कैसे अकेले भेज दी...? जबकि उसका जाति-बिरादरी का भी कोई संबंध नहीं है। जब मन परेशान हुआ तो उसने एक दिन डरु को चिट्ठी लिखकर पोस्ट कर दी। पत्र में कुसुमा कहाँ है...? किसके साथ है और कहाँ रह रही है...? सब बातों का जिक्र कर दिया। डरु को पत्र मिला। खुद न पढ़ पाने पर दूसरे से पढ़वाया। वही पत्र लेकर थाने गया। कोई मदद न मिली तो पत्नी से 500 रुपए लेकर दिल्ली पहुंचा। कई लोगों से पता पूछते-पूछते वहाँ भी पहुंचा, जहां सुन्दर लाल रह रहा था।

डरु ने मुंह पर साफी लपेटकर उस गली में घुस गया। आगे जाकर देखा कि कुसुमा बाहर नाली के किनारे बैठकर बर्तन धुल रही है। कुसुमा अपने पिता को नहीं पहचान पाई। उसे यहाँ तक आने का अंदाजा भी नहीं था। इसके बाद डरु ने पुलिस को बताया। थाना पुलिस ने धावा बोलकर कुसुमा, सुन्दर लाल और धर्मजीत को हिरासत  में लेकर थाने ले आई। माधो नहीं मिला। वह कमरे के बाहर था।  पुलिस ने कुसुमा से अपने पिता के साथ जाने को कहा लेकिन वह नहीं मानी। उसे नारी निकेतन भेज दिया गया। यह मामला मार्च 1980 का है।

दिल्ली पुलिस की सूचना पर बाद में औरैया पुलिस पहुँची। दोनों आरोपी पहले से कई मामलों में वांछित थे। कुसुमा को फिर समझाया गया। जिद पर अड़ी कुसुमा फिर भी नहीं मानी। तब कुसुमा सहित तीनों को इटावा जेल भेज दिया गया।

अब माधो को भनक लगी। वह सीधे विक्रम के पास पहुंचा। सारी घटना सुनकर विक्रम को भी क्रोध आया। उसने डरु को सबक सिखाने का निश्चय किया। मई 1980 में विक्रम ने गिरोह के साथ जाकर डरु और पत्नी साथ मारपीट कर डकैती डाली। पाल सरैनी के मल्लाहों से कहकर विक्रम ने कुसुमा सहित तीनों की जमानत इटावा से करवा ली। तीनों छूटकर सीधे पहले गोहनी पहुंचे और फिर यहीं से विक्रम के साथ श्रीराम-लालाराम गिरोह में जाकर शामिल हो गए। तब गिरोह में फूलन देवी भी थी।

जिन लोगों ने डरु के पक्ष में गवाही दी थी उन्हें विक्रम और उसके साथियों ने मारना शुरू कर दिया। पहले अशरफी, फिर जगमोहन और अंत में नेकसे मल्लाह को मार दिया गया। इसके बाद भयभीत होकर डरु और सावित्री ने जून 1980 में टिकरी से पलायन करने को मजबूर हुए।

  • गिरोह का सरदार बनने की चाहत में विक्रम ने मल्लाह साथियों के साथ बनाई थी योजना
  • कुसुमा ने साजिश उजागर की तो श्रीराम-लालाराम ने विक्रम और उसके मामा को मार डाला
  • बुधवार को कुसुमा नाइन का त्रयोदशी कार्यक्रम ससुराल में संपन्न


Dr. Rakesh Dwivedi

(Orai), Bundelkhand

ससुराल में तो दस्यु सुंदरी  कुसुमा नाइन बहू बनकर नहीं रह पाई थी पर उसका अगला जन्म सुधारने की कल्पना में धार्मिक परम्पराओं का पालन उसके पति की तरफ से फिर भी किया गया। बेहद क्रूर रही कुसुमा की बीहड़ कहानी कई हिस्सों में बंटी रही। केदार उर्फ रूठे से विवाह के बाद बीहड़ों में वह तीन डकैतों की प्रेमिका बनकर रही। फूलन देवी के आपराधिक जीवन की उम्र पांच वर्ष तो कुसुमा का 24 वर्ष तक रहा। प्रेम, भय और अपराध की इस कहानी में चर्चा उस साजिश की है, जिसमें विक्रम मल्लाह ने दोनों भाइयों-श्रीराम-लालाराम को मार देना चाहता था पर उस साजिश का शिकार बाद में वह खुद ही हो गया। उस दिन उसकी प्रेमिका फूलन देवी भी रक्षा नहीं कर पाई थी। अपनी ससुराल बैजामऊ के पास उस रात विक्रम और उसके मामा बारेलाल मल्लाह दोनों को मार डाला गया था।

 

चम्बल-यमुना के बीहड़ों के कटाव और घुमावदार बीहड़ और वहाँ की कटीली झाडियों में सिर्फ डकैत ही नहीं छुपते थे, उनमें साजिशें भी छुपा करती थीं। श्रीराम-लालाराम दोनों सगे भाई थे जो जाति के ठाकुर थे। बाबू गुर्जर की हत्या के बाद इस गिरोह का सरदार श्रीराम था। पहले फूलन देवी फिर कुसुमा नाइन भी इस गिरोह का हिस्सा बनी। मतलब श्रीराम-लालाराम और कुसुमा नाइन को छोड़कर सभी सदस्य मल्लाह जाति के ही थे। यही बात विक्रम मल्लाह को अखरती रहती थी। जब भी दोनों भाई कहीं चले जाते तो मौका पाकर विक्रम अपनी बिरादरी के सदस्यों में विरोध की चिंगारी भड़काता रहता। वह कहता कि गिरोह में सभी सदस्य मल्लाह जाति के हैं और गिरोह ये ठाकुर भाई मिलकर चलाते हैं। जबकि गिरोह उसके नाम से चलना चाहिए। विक्रम बहुत तेज दिमाग, शातिर और दुस्साहसी था। बीहड़ों में जातिवार की आग सबसे पहले उसके द्वारा ही भड़काई गई थी जिसके बाद बेहमई, अस्ता और रोमई  जैसे काण्ड सामने आये। इसके बाद से डकैतों को संरक्षण भी जातियों के आधार पर मिलने लगा।

यह साजिश पहली और बड़ी थी। इसकी पटकथा भी विक्रम ने मजबूती से तैयार की थी। यदि कुसुमा रणनीति के आधार पर चल पड़ती तो श्रीराम-लालाराम की जिंदगी पहले ही खत्म हो सकती थी। साजिश का एक हिस्सा कमजोर साबित होने से दांव उल्टा पड़ गया।


एक दिन श्रीराम और लालाराम अपने गाँव भाल गए हुए थे। तब विक्रम ने साफ-साफ कहा कि-अब ठाकुरों को गिरोह के मुखिया के रूप में बर्दाश्त नहीं करूंगा। मैंने योजना बनाई है कि माधो अपनी प्रेमिका कुसुमा को श्रीराम के हाथों सौंप दे। कुसुमा पहले उनका दिल जीते और अपनी बातों में फँसाये। फिर उन्हें एक दिन दारु पिलाये। नशा ज्यादा चढ़ने पर जब वे होश खो बैठें तो दोनों को मैं गोली मार दूंगा और गैंग का संचालन करूंगा।

माधो भी कुसुमा को श्रीराम को देने पर सहमत हो गया। गाँव से श्रीराम-लालाराम वापस आये। माधो ने उनके समक्ष जाकर बात रखी। प्रस्ताव से दोनों भाई खुश हुए। अब कुसुमा श्रीराम की हो गई और प्रेमिका बनकर रहने लगी। लालाराम भी उसे भौजी कहने लगा। प्यार और सम्मान पाकर कुसुमा नाइन का मन बदलने लगा। उसने एक दिन दोनों भाइयों को विक्रम और माधो की साजिश के बारे सब कुछ बता दिया। अब श्रीराम विक्रम को निपटाने की योजना में जुट गया। इसमें लालाराम और कुसुमा को भी साथ मिलाया। 

 

एक दिन श्रीराम ने विक्रम से बैजामऊ किसी काम से चलने के लिए राजी किया। यह बात 1980 की है। बैजामऊ विक्रम की ससुराल थी। तब छह लोग गिरोह से बैजामऊ के लिए चल पड़े। विक्रम के साथ उसका मामा बारेलाल और फूलन देवी तथा श्रीराम, कुसुमा और लालाराम। सभी के पास रायफल थी। गाँव करीब आया तो श्रीराम ने विक्रम को यह कहते हुए रोक दिया कि थोड़ी देर में ही मैं आता हूँ, तब तक तुम लोग यही पर रुको। यदि कोई खतरा हुआ तो फायरिंग कर दूंगा, तुम लोग दौड़ कर आ जाना। बरगद का पेड़ था। तीनों लोग श्रीराम के लौटने का वहीं इंतजार करने लगे। रात के 12 बजे रहे थे। विक्रम और बारेलाल को नींद आ गई। सुरक्षा के लिए फूलन देवी रायफल के साथ पहरा देने लगी।

करीब आधा किमी. चलने के बाद श्रीराम, कुसुमा और लालाराम झाडियों की आड़ में बैठकर योजना बनाने लगे कि आज विक्रम को कैसे मारा जाएकरीब डेढ़ घंटे बाद तीनों वहीं लौटे जहां विक्रम को छोड़कर गए थे। दोनों लोगों को सोता हुआ पाकर कुसुमा ने सबसे पहले फूलन को रायफल सहित दबोच लिया। इसके बाद गहरी नींद में सो रहे विक्रम को श्रीराम ने और बारेलाल को लालाराम ने गोलियाँ मार दी। अब अकेले बची फूलन से उसकी रायफल छीनकर उसे बेहमई भेज दिया गया। विक्रम की मौत ठौर पर मौत हुई या बाद में इसको लेकर मतभेद है। एक जानकार का कहना है कि विक्रम का इलाज दिबियापुर में कराया गया था, लेकिन वह बच नहीं पाया।

 

दोनों को गोलियाँ मारने के बाद श्रीराम-लालाराम गिरोह में लौटे। गिरोह के सदस्यों को जब पता चला कि विक्रम व बारेलाल को गोली मार दी गई है और फूलनदेवी को कहीं गायब कर दिया गया है तो मल्लाह सदस्यों में असंतोष की ज्वाला फूट पड़ी। उसी वक्त सभी मल्लाह गिरोह से अलग होकर अपना अलग गिरोह बना और मान सिंह को अपना सरदार चुन लिया। कुछ समय बाद जब फूलन किसी तरह गिरोह तक पहुँची तो गिरोह को नई ताकत के साथ तैयार कर विक्रम की मौत का बदला बेहमई काण्ड के रूप में लिया। इसके बाद बदले की भावना में अस्ता और रोमई काण्ड भी हुए।

 

  • कोतवाली पुलिस ने 7 लोगों के खिलाफ रजिस्टर्ड की FIR
  • रजिस्टर्ड वसीयत को दरकिनार कर रजिस्ट्री कराने का मामला
  • पैरवी करने पर कचहरी में रोककर पीड़ित को दी थी धमकी
  • जांच कमेटी की रिपोर्ट पर सस्पेंड हो चुके हैं दोनों कर्मचारी
  • दोनों कर्मचारियों के करतूतों की जांच पुलिस ने भी की



Yogesh Tripathi


रजिस्टर्ड वसीयत और दान-विलेख पत्र को दरकिनार कर अवैध तरीके से कृषि भूमि का बैनामा कराने और पीड़ित अधिवक्ता को जानमाल की धमकी देने के मामले में सिस्टमबाजमहिला लेखपाल अरुणा दिवेदी और राजस्व कर्मचारी आलोक दुबे समेत 7 लोगों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई का "हंटर" आखिर चल गया। कोतवाली पुलिस ने सभी के खिलाफ FIR रजिस्टर्ड की है। सरकारी पदों पर आसीन इन दोनों भ्रष्ट कर्मचारियों को विभागीय जांच Report के बाद Officer’s सस्पेंड कर चुके हैं। कोतवाली पुलिस मुकदमा पंजीकृत कर मामले की जांच प्रक्रिया में जुट गई है। गौरतलब है कि DM (Kanpur Nagar) के बाद पुलिस कमिश्नर (कानपुर) ने भी शिकायत मिलने पर जांच बैठाई थी। जिसकी रिपोर्ट एक महीने के अंदर जांच कर रहे मातहतों को देनी थी। उल्लेखनीय है कि इस बड़ी खबर को www.redeyestimes.com (News Portal) ने सबसे पहले प्रमुखता से प्रकाशित किया था।  

पीड़ित अधिवक्ता संदीप सिंह


पेशे से अधिवक्ता ग्राम कला का पुरवा, (रामपुर भीमसेन), थाना सचेंडी, कानपुर निवासी Sandeep Singh ने बताया कि उनकी दादी स्वर्गीय श्रीमती मोहन लाला उर्फ लाल साहिबा ने प्रार्थी व उसके भाई प्रदीप सिंह, पिता बीरेंद्र बहादुर सिंह उर्फ भोला सिंह, चाचा जंगबहादुर सिंह व अशोक सिंह को अपनी कृषि भूमि की रजिस्टर्ड वसीयत 31/05/2013 को की थी। स्वर्गीय श्रीमती मोहन लाला ने 17/07/2013 को पंजीकृत दान विलेख के जरिए अन्य भूमि/संपत्तियों के साथ-साथ एक और ग्राम सिंहपुर कठार स्थित आराजी संख्या 207/1.0990 हेक्टेयर तथा रामपर भीमसेन स्थित आराजी संख्या 895/1.7580 हेक्टयर की भी लिखापढ़ी की थी। दादी की रजिस्टर्ड़ वसीयत और दान विलेख के जरिए मिली संपत्तियों का प्रार्थी संदीप सिंह, उसके भाई प्रदीप सिंह, पिता बीरेंद्र बहादुर सिंह उर्फ भोला सिंह, चाचा जंगबहादुर सिंह व अशोक सिंह संपत्तियों की देखरेख व कृषि योग्य भूमि पर खेती करते आ रहे हैं। सभी के पास मालिकाना हक भी है।


Sandeep Singh का आरोप है कि उनकी बुआ राजपति देवी W/O रघुवीर सिंह ने इस वसीयत के खिलाफ सिविल जज सीनियर डिवीजन (कानपुर नगर) की कोर्ट में मूलवाद संख्या 2550/2013 राजपति देवी बनाम बीरेंद्र सिंह आदि का वाद दाखिल किया। बाद में श्रीमती राजपति ने खुद ही यह वाद Court में वापस ले लिया। राजपित देवी ने दादी स्वर्गीय मोहन लाला उर्फ लाल साहिबा के पंजीकृत दान विलेख के खिलाफ सिविल जज (जूनियर डिवीजन) / एफ.टी.सी कोर्ट में मूलवाद संख्या 1368/2013 को प्रस्तुत किया। इस वाद को भी श्रीमती राजपति देवी ने कोर्ट में मौजूद रहकर वाद को वापस ले लिया।


Sandeep Singh का आरोप है कि उनकी बुआ राजपति देवी और राजकुमारी देवी ने प्रार्थी की दादी स्वर्गीय श्रीमती मोहन लाला के रजिस्टर्ड वसीयत को छिपाकर धोखाधड़ी करते हुए उक्त कृषि योग्य भूमि को अपने नाम सरकारी अभिलेखों में चढ़वाने के लिए नायब तहसीलदार (बिठूर) की कोर्ट में वाद हल्का लेखपाल Aruna Dwivedi मकान नंबर 14-B बाबा नगर नौबस्ता, कानपुर और तहसील राजस्व कर्मचारी आलोक दुबे S/O स्वतंत्र कुमार दुबे R/O एलआइजी 17, दयानंद विहार फेस-1, कल्याणपुर, कानपुर नगर की साठगांठ से प्रस्तुत किया। इस दौरान प्रार्थी के मुकदमें अलग Court में चल रहे थे। जिसे भी राजकुमारी और राजपित देवी ने नायब तहसीलदार (बिठूर) कोर्ट से छिपा लिया।


नायब तहसीलदार (बिठूर) की कोर्ट ने एक पक्षीय आदेश 11/03/2024 राजपति देवी और राजकुमारी के पक्ष में सुनाते हुए भूमि को उनके नाम पर सरकारी अभिलेखों में अंकित करने का आदेश जारी किया।


चूंकि स्थानीय लेखपाल Aruna Dwivedi और राजस्व कर्माचारी आलोक दुबे की की साठगांठ पहले से थी, इस लिए नायब तहसीलदार (बिठूर) कोर्ट ने 11/03/2024 जब एक पक्षीय आदेश दिया तो राजपति देवी, राजकुमारी ने स्थानीय लेखपाल अरुणा दिवेदी और राजस्व कर्मचारी आलोक दुबे को उसी दिन अर्थात 11/03/2024 को फर्जी और कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर आराजी संख्या 895 का जुज रक्बा 0.3070 का दोनों के हक में बैनामा कर दिया। 12/03/2024 को राजकुमारी देवी ने राजपति के हक में अवैध तौर पर दानपत्र भी निष्पादित कर दिए। इतना ही नहीं श्रीमती राजपति ने अन्य आराजियों का भी अवैध तौर पर विक्रय अनुबंध पत्र अरुणा व आलोक के हक में कर दिया।


संदीप सिंह का आरोप है कि करीब पांच महीने बाद स्थानीय लेखपाल रहीं अरुणा दिवेदी और राजस्व कर्मचारी आलोक दुबे ने उपरोक्त सभी भूमि 06/08/2024 को कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से धोखाधड़ी करते हुए सभी कागजातों को वैध बताकर मालिकाना हक आर.एन.जी इंफ्रा R/O 15/78 सिविल लाइंस कानपुर नगर के भागीदार अमित गर्ग S/O स्वर्गीय प्रेम नारायण गर्ग से साठगाठ करके एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत फर्जी विक्रयनामा आर.एन.जी इंफ्रा के पक्ष में विक्रयनामा निष्पादित कर विक्रय कर दिया।

आरोप है कि इसी तरह लेखपाल Aruna Dwivedi और तहसील कर्माचारी आलोक दुबे ने प्रार्थी संदीप सिंह व अन्य परिजनों की ग्राम सिंहपुर कठार स्थित आराजी संख्या 207 रक्बा 0.5495 हेक्टेयर का कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से दिनांक 16/05/2024 को अपने हक में फर्जी विक्रय पत्र निष्पादित करवा लिया। जबकि उपरोक्त आराजी संख्या 207 पर श्रीमती राजपति देवी और राजकुमारी का किसी भी प्रकार का मालिकाना हक नहीं था।

Sandeep Singh का आरोप है कि राजपति देवी, राजकुमारी देवी ने अपने परिजनों और लेखपाल अरुणा दिवेदी और तहसील कर्मचारी आलोक दुबे व अमित गर्ग ने आपसी सांठगांठ कर सुनियोजित षडयंत्र के तहत आर्थिक लाभ प्राप्त करने की नीयत से फर्जी एवं कूटरचित दस्तावेजों को तैयार कर उपरोक्त सभी भूमि का बैनामा करवा लिया। सभी लोगों ने गिरोह बनाकर कूटरचित कागजातों के जरिए न सिर्फ फर्जी बैनामा करवाया बल्कि प्रार्थी व उसके परिजनों को आर्थिक और मानसिक अपूर्णनीय भी पहुंचाई है।

अपने साथ हुई धोखाधड़ी और जानमाल की धमकी मिलने के बाद Sandeep Singh ने पूरे प्रकरण की शिकायत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जिलाधिकारी कानपुर नगर और पुलिस कमिश्नर कानपुर नगर से की थी. जिलाधिकारी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी। पुलिस कमिश्नर ने भी जांच के आदेश दिए थे। जांच रिपोर्ट के बाद दोनों राजस्व कर्मचारी आलोक दुबे और महिला लेखपाल अरुणा दिवेदी को कुछ दिन पहले सस्पेंड कर दिया गया।

कोतवाली पुलिस ने देर रात्रि अरुणा दिवेदी, आलोक दुबे, राजपति देवी, राज कुमारी, रघुवीर सिंह, अमन सेंगर, अमित गर्ग के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 318 (4) धोखा देकर किसी की संपत्ति हस्तानांतरित करना (तीन साल की सजा का प्रावधान है)। BNS (338) के जाली दस्तावेज बनाना (इसमें 10 साल तक की सजा का प्रावधान है)। BNS 336 (3) धोखाधड़ी के इरादे से जालसाजी करना (7 साल तक की सजा का प्रावधान) । BNS 341 (2) जालसाजी के लिए किसी की नकली मुहर और नेमप्लेट का प्रयोग करना । BNS 61 (2) दो या दो से अधिक लोग जब मिलकर किसी अपराध करने का प्लान बनाते हैं (सजा और जुर्माना) दोनों का प्रावधान है। BNS (352) जान बूझकर किसी व्यक्ति का अपमान करना या अपराधिक कार्य के लिए उकसाना (दो साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान)। BNS 351 (3) किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाना या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की धमकी देना ( इसमें 7 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है)।