• खुफिया एजेंसियों की Report के बाद भी जूना अखाड़ा गद्दी पर जबरन काबिज
  • जिला प्रशासन को भी जूना अखाड़ा के पदाधिकारियों ने दिखाया ठेंगा, बुलाया तक नहीं
  • प्रशासन और इंटेलीजेंस विभाग के अफसरों को अब तक कोई कागज नहीं दिखा सका जूना अखाड़ा 
  • श्यामगिरी ने शासन और प्रशासन को पत्र लिखकर SIT जांच की मांग की 
  • बुजुर्ग क्रिकेट खिलाड़ियों की सुरक्षा में व्यस्त अफसरों ने अभी तक श्रीआनंदेश्वर मंदिर प्रकरण की सुध नहीं ली
  • सोलसा भंडारा के बाद चार साधु-संतों की जूना अखाड़ा ने मंदिर में नियुक्ति की


Yogesh Tripathi

अंतत : वही हुआ जिसकी आशंका जताई जा रही थी। लाखों भक्तों की आस्था के केंद्र श्रीआनंदेश्वर मंदिर (परमट) कानपुर के महंत की गद्दी पर जूना अखाड़ा ने गुरु-शिष्य परंपरा का लोप कर कब्जा कर लिया। महंत की गद्दी पर जूना अखाड़ा ने अपने चार पदाधिकारियों के नियुक्ति की घोषणा की। खास बात ये रही कि जूना अखाड़ा ने जिला प्रशासन के अफसरों को भी विश्वास में नहीं लिया। यहां तक की किसी भी प्रशासनिक अफसर को बुलाया तक नहीं गया। भक्तगणों को भी नहीं बुलाया गया। महंत की गद्दी को लेकर पकी "खिचड़ी" जूना अखाड़ा के बीच रही। उधर, इंटेलीजेंस ने भी इस पूरे प्रकरण की एक विस्तृत रिपोर्ट शासन को भेज दी है। खुफिया अफसरों की मानें तो तमाम बार जूना अखाड़े से मंदिर के महंत की गद्दी को लेकर चल रहे प्रकरण के बाबत कागजात मांगे गए लेकिन जूना अखाड़ा के पदाधिकारियों ने अभी तक कोई साक्ष्य, प्रमाण या फिर कागजत नहीं सौंपे। www.redeyestimes.com (News Portal) के पास जो जानकारियां हैं उसके मुताबिक दो प्रशासनिक अफसरों ने भी जूना अखाड़े से कागजात मांगे हैं लेकिन अखाड़ा अभी तक कोई कागज नहीं दे सका है। मंदिर के महंत की गद्दी पर कब्जा होने के बाद ब्रम्हलीन महंत श्यामगिरी के बड़े शिष्य रामदास  उर्फ अमरकंटक का कहना है कि उन्होंने पूरे प्रकरण की शिकायत जिला प्रशासन के अफसरों से लेकर शासन में बैठे बड़े अफसरों से करते हुए SIT जांच की मांग की है। 


उधर, अंदरखाने से खबर ये भी है कि एक खुफिया विंग मंदिर से जुड़े तमाम कद्दावर और सफेदपोश माफियाओं की बड़ी लिस्ट तैयार कर चुकी है। ये संख्या करीब दो दर्जन से अधिक लोगों की है। कुछ की "कुंडली" तो तीन दशक पुरानी बांची गई है। इसमें कई लोगों के खिलाफ देश की बड़ी एजेंसियां अन्य मामलों को लेकर जांच कर रही हैं। सूत्रों की मानें तो राजनीतिक दलों से जुड़े लोग भी इनमें शामिल हैं।

 


15 सितंबर यानि कल श्यामगिरी का सोलसा भंडारा था। जिसमें कार्यक्रम के बाद जूना अखाड़ा के तमाम पदाधिकारी मौजूद रहे। श्रीआनंदेश्वर मंदिर परिसर में जूना अखाड़ा के पदाधिकारियों ने सभी पुरानी व्यवस्थाओं को ताक पर रखते हुए चार साधु-संतों को मंदिर की देखरेख के लिए नियुक्ति कर दी। जिनकी नियुक्ति की गई है उसमें पहले नंबर पर हरिगिरी, प्रेमगिरी, उमाशंकर भारती, नारायण गिरी, केदार पुरी के नाम हैं। इसमें हरि गिरी मुख्य रहेंगे। उनके नीचे सभी चार-साधु संत कार्यभार देखेंगे। www.redeyestimes.com (News Portal) के पास सभी Video मौजूद हैं। जिसमें नियुक्ति के बाद सभी हरी गिरी को चादर ओढ़ा रहे हैं। इसके बाद जूना अखाड़ा की एक मीटिंग हुई। जिसको हरि गिरी ने संबोधित किया। इस दौरान Video में मंदिर का कोई कर्मचारी, भक्त या फिर प्रशासनिक अफसर दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहा है। News Portal के पास जो जानकारियां है उसके मुताबिक लखनऊ की सत्ता में बैठी एक "अदृश्य शक्ति" की शह पर जूना अखाड़ा की तरफ से पूरा "खेल" खेला जा रहा है। News Portal ने जब इस "अदृष्य शक्ति" के सभी Spcial Media Acount की छानबीन की तो कई चौंकाने वाली तस्वीरें भी मिली हैं। ये तस्वीरें जूना अखाड़ा के दिग्गज पदाधिकारियों की है। जो "अदृश्य शक्ति" के पास खुद पहुंचे थे। यही वजह है कि जूना अखाड़े की मनमानी के आगे जिला प्रशासन भी "मौन" है। 


 

इसे ऐसे समझा जा सकता है कि श्यामगिरी का पार्थिव शरीर आने से पहले ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (JCP) प्रशासनिक अफसरों के साथ मंदिर पहुंचते हैं और लंबी बातचीत के बाद वापस चले जाते हैं। श्यामगिरी का पार्थिव शरीर अगले दिन जब रात में 11 बजे पहुंचता है तो 9 बजे से ही मंदिर परिसर को छावनी में तब्दील कर दिया जाता है ताकि परिंदा भी पर न मार सके। पूरी रात व्हील चेयर पर श्यामगिरी के पार्थिव शरीर को लेकर जूना अखाड़ा के लोग श्रीआनंदेश्वर मंदिर परिसर में लेकर पहुंचते हैं। रात्रि 12 बजे के बाद मंदिर के पट खोलकर पूजा-अर्चना की जाती है। उसके बाद गंगा स्नान तक करवाया जाता है। यह सारा काम पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में होता है लेकिन श्यामगिरी के शिष्य रामदास उर्फ अमरकंटक व उनके गुरु भाइयों को मंदिर में प्रवेश तक नहीं करने दिया जाता है। अगले दिन भू-समाधि में पुलिस का पहरा अफसर और भी गहरा कर देते हैं। 


 

सवाल यही है कि इतना सब होने के बाद भी जिला प्रशासन के अफसरों ने अभी तक दोनों पक्षों को बुलाकर बातचीत या फिर सवाल-जवाब क्यों नहीं किया...? एक पक्ष ने जब कागजातों का पुलिंदा सौंप दिया है तो दूसरे पक्ष जूना अखाड़ा से कागजात अफसर क्यों नहीं ले सके हैं...? यदि जूना अखाड़े के पास कोई ठोस कागजात नहीं है तो फिर मंदिर की गद्दी पर उनका कब्जा क्यूं और किसकी शह पर हो गया ...? आखिर क्या वजह है कि प्रशासन जूना अखाड़ा के लोगों को बुला तक नहीं पा रहा है...? जबकि जूना अखाड़ा के लोगो सारी परंपराओं को ताक पर रखकर अपनी मनमानी करने पर पूरी तरह से आमादा हैं। सवाल ये भी उठता है कि यदि सबकुछ निष्पक्ष हो रहा है तो प्रशासन की तरफ से अभी तक किसी एक ऐसे अफसर को इस पूरे प्रकरण की जिम्मेदारी क्यों नहीं दी गई...? जिससे पूरे प्रकरण की जांच जल्द हो सके। जबकि वर्ष 2011 में भी जब मंदिर प्रकरण का मुद्दा गर्माया था तो तत्कालीन जिलाधिकारी ने ADM & ACM को विवाद सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपते हुए उनसे रिपोर्ट मांगी थी। उस समय भी जूना अखाड़ा के पदाधिकारी प्रशासनिक अफसरों को कोई कागजात नहीं दे सके थे। BSP की सरकार थी जिसकी वजह से जूना अखाड़ा को "बैकफुट" होना पड़ा था लेकिन वर्तमान में हालात कुछ और हैं। सत्ता की सरपरस्ती में ही सबकुछ हो रहा है। 


Note----तमाम खुफियां इकाइयां भी श्रीआनंदेश्वर मंदिर के महंत की गद्दी पर छिड़े विवाद के पीछे अरबों रुपए की बेशकीमती संपत्ति को वजह मान रही हैं। एक खुफिया विंग तो इस पूरे प्रकरण की रिपोर्ट तक सौंप चुकी है। इसमें कई अरब रुपए की संपत्ति तो श्रीआनंदेश्वर मंदिर के आसपास ही स्थित है। श्रीआनंदेश्वर मंदिर और आनंदेश्वर ट्रस्ट के बीच मुकदमेंबाजी हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक हुई है लेकिन हर जगह फैसला श्रीआनंदेश्वर मंदिर के पक्ष में गया। हाईकोर्ट अपने आदेश में यह भी कह चुका है कि मंदिर में गुरु-शिष्य परंपरा है। मंदिर का महंत ही सभी संपत्तियों का स्वामी रहेगा। गौर करने वाली बात ये है कि इसी वजह से मंदिर के महंत की गद्दी को लेकर जूना अखाड़ा उछलकूद मचाए हुए है। श्यामगिरी के शिष्य रामदास का आरोप है कि जूना अखाड़े के लोग अरबों-खरबों रुपए की संपत्तियों को कौड़ियों के भाव ठिकाने लगाने के लिए सारा कुचक्र रच रहे हैं। चूंकि मंदिर की गद्दी पर जब जूना अखाड़ा रहेगा तो यह काम बेहद आसान हो जाएगा और किसी को संपत्ति बिकने की भनक तक नहीं लगेगी।


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