Uttar Pradesh के आगरा में “हिन्दुस्तान” संस्करण में सब एडिटर (उप संपादक) के पद पर कार्यरत सुरेश सिंह ने मंडे की अलसुबह खुदकुशी कर ली। उनका शव घर के अंदर फांसी के फंदे से लटकता मिला। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सुरेश सिंह लंबे समय से आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। देर रात्रि वे घर लौटे और खुदकुशी कर ली।


 YOGESH TRIPATHI


 रात 2.30 बजे तक अखबार के दफ्तर में लगाते रहे पेज

सुरेश सिंह के करीबी दोस्तों की मानें तो संडे की रात्रि करीब 2.30 बजे तक वे अखबार के दफ्तर में पेज लगाते रहे। अखबार का संस्करण छूटने के बाद सुरेश सिंह घर चले गए। घर पहुंचने के थोड़ी देर बाद उन्होंने फांसी लगा ली। सुबह उनका शव कमरे के अंदर फांसी के फंदे से लटकता मिला तो हड़कंप मच गया। उनके खुदकुशी करने की खबर जब साथी मीडिया कर्मियों को लगी तो सभी उनके निवास स्थान पर पहुंचे।

https://twitter.com/VnsAnuTi/status/1142829088748343297

 आर्थिक तंगी के साथ काम को लेकर भी थे डिप्रेशन में

सुरेश सिंह के बारे में बताया जा रहा है कि वे आर्थिक तंगी से तो जूझ ही रहे थे, साथ ही साथ अखबार में देर रात्रि तक काम करने की वजह से भी वे काफी थकान और तनाव महसूस करते थे। इसका जिक्र वे कई बार साथी मीडिया कर्मचारियों से कर चुके थे। सिटी एडीशन के साथ कभी-कभी वे पहले पेज को भी लगाते थे।

https://twitter.com/pankajjha_/status/1142969190556422144

प्रिंट मीडिया के पत्रकारों की हालत बेहद खराब

वर्तमान समय में प्रिंट मीडिया में कार्यरत पत्रकारों और पेज बनाने वाले ऑपरेटरों की हालत अधिक दयनीय हो चुकी है। अखबार में ऊंचे पदों पर बैठे संपादक, समाचार संपादक, उप समाचार संपादक और चीफ रिपोर्टर के वेतन को यदि छोड़ दें तो निचले स्तर पर कार्यरत पत्रकारों का वेतन कुछ खास नहीं होता है। पुरानी भर्ती वाले लोगों का वेतन ही ठीक लेकिन जो नई भर्तियां हो रही हैं वो तीन साल के कांट्रैक्ट पर की जाती हैं। यूपी में किसी भी अखबार के मालिक ने मजीठिया को लागू नहीं किया है। लिहाजा ट्रेनी रिपोर्टर 8 से 12 हजार, रिटेरनशिप में रखे गए रिपोर्टर 4500 से 6000 रुपए के बीच ही वेतन पाते हैं। सब एडिटर के पद पर कार्यरत पत्रकारों को 12 से 15 हजार के बीच ही वेतन मिलता हैं। कुछ अखबारों में ये 18 से 22 हजार रुपए तक ही है।

मीडिया संस्थानों में भी चालू हो चुका है वसूली का धंधा

वसूली का धंधा अभी तक सरकारी महकमों में ही देखने और सुनने को मिलता था लेकिन हाल के कुछ वर्षों में ये गोरखधंधा मीडिया संस्थानों में भी शुरु हो चुका है। ऊंचे पदों पर बैठे लोग जिलों के रिपोर्टरों से हर महीने की मोटी वसूली कर रहे हैं। डेस्क और फील्ड पर कार्यरत निचले स्तर के कर्मचारियों को बेवजह तंग कर उन्हें नौकरी से निकालने की धमकियां दी जाती हैं। हाल के दिनों में कुछ की तो “बलि” (नौकरी से निकाला) जा चुका है। लंबे समय से कार्यरत तमाम सीनियर जर्नलिस्ट के डिप्रेशन में काम करने की एक बड़ी वजह ये भी है कि वर्तमान हालात में उन्हें अपने से काफी जूनियर के नीचे काम करना पड़ रहा है।

तमाम संस्थानों में जो संपादक हैं वे किसी न किसी तिकड़म, दलाली और सप्लाई के जरिए यहां तक पहुंचे हैं। सच्चाई ये है कि कोई ढंग की खबर भी वे नहीं लिख सकते हैं लेकिन दिल्ली और नोएडा तक सप्लाई करने के बदौलत वे उच्चपदों पर आसीन हैं। इन संपादकों के नीचे वो लोग काम कर रहे हैं जो कभी उनको सिखाते थे या फिर उन्हें नौकरी में लाए थे। कुल मिलाकर अखबार में प्रमोशन का कोई पैमाना नहीं बचा है। काम के आधार पर आपको न प्रमोशन मिलेगा और न ही आपका वेतन बढ़ेगा। तमाम ऐसे सीनियर पत्रकार हैं जो सिर्फ परिवार की वजह से मजबूरी में नौकरी कर रहे हैं।


 

 

 
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