समाजवादी पार्टी (SP) के पूर्व विधान परिषद सदस्य (Ex.MLC) लाल सिंह तोमर की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। South City के नौबस्ता हमीरपुर रोड स्थित रूपरानी सुखनंदन देवी डिग्री कॉलेज को लेकर करीब डेढ़ दशक से चल रहे विवाद की कड़ी में उनको न सिर्फ हार का मुंह देखना पड़ा है बल्कि Court ने सख्त टिप्पणी भी की है। प्रथम अपर लघुवाद न्यायधीश (JSCC) (Kanpur) के जज अनिल कुमार खरवार ने बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए अपने आदेश में लिखा है कि “पत्रावली के विश्लेषण से विदित है कि विधि के शासन को धता करते हुए पुलिस की नाकामी दृष्टिगत है और दबंगई के बल पर वादी (समीर मेहरोत्रा) की बैनामा संपत्ति को प्रतिवादी (लाल सिंह तोमर और उनके बेटे) की तरफ से हड़पन का जो कुत्सित प्रयास किया गया है, वो कानून के शासन को शर्मशार करता है”। साथ ही कोर्ट ने ये भी लिखा कि “ऐसे व्यक्तियों को हतोत्साहित करना न्याय व्यवस्था का पुनीत कार्य है” गौरतलब है कि गुंडई के बल पर जमीन कब्जाने के बाद लाल सिंह तोमर के बेटे ने अपने पिता के नाम की कई पट्टिका लगाई थी। जिसका उल्लेख भी आदेश में हैं।



YOGESH TRIPATHI



11 वर्ष पुराना मुकदमा हार गए सपा नेता


आर्य नगर निवासी समीर मेहरोत्रा वर्ष 08 में सिविल शूट 1674/08 दाखिल किया था। इस मुकदमें में रूपरानी सुखनंदन देवी डिग्री कालेज प्रबंधतंत्र के सभी पदाधिकारियों पर आरोप है कि सभी ने दबंगई और गुंडई के बल पर कॉलेज की बाउंड्री वॉल को तोड़ समीर की जमीन के बड़े भू-भाग को कॉलेज की परिधि में मिला लिया। लंबे समय तक ये मुकदमा चला और 13 मार्च को कोर्ट ने इस पर अपना फैसला सुनाया।


समीर मेहरोत्रा के अधिवक्ता वीरेंद्र सिंह भदौरिया के मुताबिक यूं तो लाल सिंह तोमर और उनके बेटे अतुल सिंह तोमर पर कॉलेज की जमीन को लेकर कई सिविल शूट और क्रिमिनल केस कानपुर की विभिन्न कोर्ट में चल रहे हैं। एक क्रिमिनिल मुकदमा MP/MLA (Court) में लंबित है। कई मुकदमों में जो दस्तावेज दाखिल किए गए हैं वो भ्रामक और तथ्य से परे हैं।


श्रीभदौरिया के मुताबिक वादी समीर मेहरोत्रा की रिहायशी भूमि रकबई 664.966 वर्ग मीटर (आराजी संख्या 239, 240) नौबस्ता कानपुर नगर, जिसकी चतुर्दिक सीमाएं वाद पत्र के अंत में उल्लिखित हैं को मालिक घोषित किया जाता है। ये आदेश प्रथम अपर लघुवाद न्यायधीश (JSCC) ने सभी पत्रों का अवलोकन करने के बाद दिया।


CSJMU के पास है मान्यता को लेकर चल रही जांच


छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के पास एक जांच पिछले काफी समय से लंबित पड़ी है। ये जांच डिग्री कॉलेज की मान्यता के संबध में हैं। जानकारी के मुताबिक आर्यनगर निवासी संतोष मेहरोत्रा की भूमि से संबधित मुकदमा भी न्यायलय में विचाराधीन है। साथ ही संतोष मेहरोत्रा ने कई क्रिमिनल केस भी लाल सिंह तोमर और उनके बेटे अतुल सिंह तोमर पर कर रखे हैं। www.redeyestimes.com (News Portal) से बातचीत में संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि गवर्नर ने भी आदेश दे रखा है। लेकिन विश्वविद्यालय के एक अफसर की तरफ से पूरे मामले में शिथिलता बरती जा रही है। इसमें कई अफसरों की भूमिका भी काफी संदिग्ध है। जल्द ही इस पूरे प्रकरण को वो देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में रखेंगे।


कोर्ट से भगोड़ा तक घोषित हो चुके हैं लाल सिंह तोमर


पूर्व विधान परिषद सदस्य लाल सिंह तोमर रूपरानी सुखनंदन देवी डिग्री कॉलेज से जुड़े एक क्रिमिनल मामले में कोर्ट से भगोड़ा तक घोषित हो चुके हैं। निचली अदालत की कार्यवाही से बचने के लिए लाल सिंह तोमर सुप्रीम कोर्ट तक गए थे लेकिन फिर भी उनको वापस लौटकर कानपुर कोर्ट में आना पड़ा। तमाम जद्दोजहद के बाद करीब एक साल पहले उन्हें अंतरिम जमानत मिली थी। इसके बाद उनका मामला MP/MLA (Court) ट्रांसफर कर दिया गया। सपा सरकार के कार्यकाल में लाल सिंह तोमर ने 321 के तहत अपने ऊपर दर्ज सभी मुकदमों को हटाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था लेकिन संतोष मेहरोत्रा की तरफ से गवर्नर, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और हाईकोर्ट को भेजे गए शिकायती पत्र की वजह से उनके मुकदमें नहीं हट पाए। संतोष मेहरोत्रा ने पत्र में लिखा था कि जो मुकदमें लाल सिंह तोमर पर चल रहे हैं वो राजनीतिक नहीं बल्कि उनकी भूमि पर कब्जा किए गए मामलों के हैं। जिसके बाद ACMM (2) की अदालत ने लाल सिंह तोमर की तरफ से दाखिल की गई 321 की अर्जी को खारिज कर दिया था।

 

बिना नक्शे के ही बन गया है डिग्री कॉलेज


पोर्टल के पास जो जानकारियां और कागजात हैं उसके मुताबिक नौबस्ता स्थित रूपरानी सुखनंदन देवी डिग्री कॉलेज का निर्माण बगैर नक्शा पास कराए ही किया गया है। ऐसा केडीए के अफसरों और कर्मचारियों की मिलीभगत के बाद संभव हो सका। आरोप है कि तमाम कागजात अपूर्ण होने के बाद भी राज्य सरकार की तरफ से कॉलेज को मान्यता कैसे मिल गई ? इसके लिए संतोष मेहरोत्रा की तरफ से गवर्नर को पत्र लिखा गया। जिसके बाद गवर्नर ने भी जांच के आदेश दिए लेकिन वो ठंडे बस्ते में है। UGC से मान्यता खत्म कराने को लेकर भी शिकायत की गई। जिसके बाद जांच विश्वविद्यालय के एक अफसर को दी गई। जिस अफसर के पास जांच हैं उसने इस दिशा में एक भी कदम अभी तक नहीं बढ़ाया है।

 

 

 
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