- पुलिस की मदद से बच्ची लाल उर्फ राम लाल ने किया था मंदिर पर कब्जा
- 1920 में तत्कालीन महंत को भ्रमित कर भक्तों ने श्रंगार कमेटी गठित की
- 1929 में इस कमेटी ने गैर कानूनी ढंग से ट्रस्ट भी बना लिया
- 1948 में बच्ची लाल उर्फ राम लाल को कोर्ट में मुंह की खानी पड़ी
- तब बच्ची लाल श्रीआनंदेश्वर मंदिर का बन बैठा था स्वयं-भू सचिव
- मंदिर की कई सौ करोड़ं की बेशकीमती संपत्ति पर निगाह जमाए रहते हैं "गिद्ध"
Yogesh Tripathi
Kanpur में परमट स्थित श्रीआनंदेश्वर मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र सदियों से रहा है। इस मंदिर का इतिहास करीब 250 वर्ष के आसपास का है। सरकारी अभिलेखों की बात करें तो इस मंदिर का निर्माण सीसामऊ के जमींदार स्वर्गीय गोकुल प्रसाद मिश्र ने करवाया था। भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के साथ-साथ मंदिर में उन्होंने अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी स्थापना करवाई थी। करीब 102 वर्ष पहले 1920 में बरतानिया हुकूमत के समय पहली बार श्रीआनंदेश्वर मंदिर पर कब्जे का प्रयास उस समय के दबंग छवि वाले बच्ची लाल उर्फ रामलाल ने किया था। लेकिन वह पूरी तरह से सफल नहीं हो सके लेकिन वर्ष 1946 में बच्ची लाल फर्जी अभिलेखों और तत्कालीन पुलिस की सरपरस्ती में मंदिर पर कब्जा करने में सफल हो गए। मंदिर और उसकी संपत्तियों के साथ-साथ दान-पात्र तक पर बच्ची लाल उर्फ रामलाल का कब्जा हो गया। हालांकि तत्कालीन महंत ने Court का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने वर्ष 1948 में फैसला श्रीआनंदेश्वर मंदिर महंत के पक्ष में सुनाया। जिसके बाद बच्ची लाल को श्रीआनंदेश्वर मंदिर और उसकी तमाम बेशकीमती संपत्तियों से दखल किया गया।
खबर वर्ष 2011 मई महीने की है लेकिन वर्तमान में जो विवाद है उसकी जड़ यही से निकली |
श्रीआनंदेश्वर मंदिर पर कब्जे की "जंग" इसके बाद भी जारी रही। वर्ष 1955 में एक बार फिर निचली अदालत से आनंदेश्वर ट्रस्ट के पक्ष में मुकदमा डिक्री हो गया। कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ तत्कालीन महंत दशरथ गिरी महाराज ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। वर्ष 1967 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पैसला मंदिर और तत्कालीन महंत दशरथ गिरी के पक्ष में सुनाया।
"श्रीआनंदेश्वर मंदिर बनाम आनंदेश्वर ट्रस्ट" की यह "अदालती जंग" हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी नहीं थमी। आनंदेश्वर ट्रस्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट (SC) का दरवाजा खटखटाते हुए अपील प्रस्तुत की लेकिन फर्जी और कूटरचित दस्तावेज के जरिए मंदिर पर कब्जा करने की जुगत भिड़ा रहे आनंदेश्वर ट्रस्ट के स्वयं-भू सचिव बच्ची लाल को सुप्रीम कोर्ट में भी मुंह की खानी पड़ी। तमाम दस्तावेजों के अवलोकन और गुण-दोष के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आनंदेश्वर ट्रस्ट की यह अपील 1970 में खारिज कर दी।
जिसके बाद यह तस्वीर बिल्कुल साफ हो गई कि आनंदेश्वर ट्रस्ट पूरी तरह से फर्जी है। इतना ही नहीं इस ट्रस्ट का कोई वैधानिक अस्तित्व भी नहीं है। वर्ष 1976 में श्रीआनंदेश्वर मंदिर के तत्कालीन महंत ने उच्च न्यायालय में एक अपील दायर की। जिस पर उच्च न्यायालय ने करीब चार साल बाद फैसला सुनाया। इस अपील में यह निर्णीत किया गया है कि सभी संपत्तियों के जो मूलवाद वर्ष 1948 में दाखिल हुआ था की विषय वस्तु थी एवं जो प्रतिवादी गणों को इजरा में प्राप्त हुई थी...उसे पुनर्स्थापना में प्राप्त करने का अधिकार वादी श्रीआनंदेश्वर महराज को है। उक्त सभी बातें ब्रम्हलीन महंत श्यामगिरी हलफमाना देकर कोर्ट में कह चुके हैं।
यहां पर गौर करने वाली बात ये भी है कि श्रीआनंदेश्वर मंदिर की सिर्फ कानपुर में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी संपत्तियां हैं। कानपुर के पतारा स्थित बाणेश्वर मंदिर की बेशकीमती खेती। बाबा घाट की प्रापर्टी और गौशाला। शिवली स्थित प्रापर्टी और चर्चा तो ये भी है कि यूपी के साथ-साथ उत्तराखंड में भी श्रीआनंदेश्वर मंदिर की बेशकीमती संपत्तियां हैं। यही कारण है कि सिर्फ बाहरी शक्तियां ही नहीं बल्कि लोकल सफेदपोश माफिया भी श्रीआनंदेश्वर मंदिर के ब्रम्हलीन महंत श्यामगिरी से लंबे समय तक मलाई खाते रहे हैं। कुछ लखपति तो कई करोड़पति हो गए।
1937 में बच्ची लाल ने तत्कालीन महंत महेश गिरी को बना दिया था नौकर
श्रीआनंदेश्वर मंदिर के खिलाफ साजिश कितनी गहरी की जाती है इसका अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि वर्ष 1937 में श्रीआनंदेश्वर ट्रस्ट के स्वयं-भू सचिव बच्ची लाल उर्फ रामलाल और उनके सहयोगियों ने तत्कालीन महंत महेश गिरी के सीधे होने का फायदा उठाते हुए उनके अंगूठे के निशान कई जगहों पर लगवाकर एक फर्जी कागजात तैयार करवाया। जो लिखापढ़ी की गई उसमें तत्कालीन महंत महेश गिरी को 50 पैसे रोज का ट्रस्ट का नौकर घोषित कर दिया गया। इतना ही नहीं मंदिर की तमाम चल और अचल संपत्तियों को हड़पने की दुरभि संधि भी हुई। इसकी जानकारी जब महंत को हुई तो उन्हे गहरा आघात लगा लेकिन इसके बाद भी वह मंदिर के महंत की गद्दी पर विराजमान रहे और मंदिर की संपत्तियों पर अपना निर्विवाद तरीके से सर्वराहकाात्व स्थापित रक्खा।
श्रीआनंदेश्वर मंदिर के महंत श्यामगिरी रविवार की अलसुबह ब्रम्हलीन हो गए। वे लंबे समय से बीमार थे और उनका इलाज जूना अखाड़े के लोग देहरादून में करवा रहे थे। मंगलवार सुबह बाबा घाट के बाहर गंगा किनारे जूना अखाड़ा के साधु-संतों ने मंदिर की वंशावली और गुरु-शिष्य परंपरा को ताक पर रखते हुए श्यामगिरी को भू-समाधि दे दी। श्यामगिरी को भू-समाधि दे दी गई है लेकिन सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही है कि आखिर मंदिर का महंत कौन बनेगा..? श्यामगिरी का कोई शिष्य या फिर "Power Bank" की "कृपा" से जूना अखाड़ा मंदिर पर काबिज रहकर किसी को मंदिर के व्यवस्था का जिम्मेदारी देगा। ये अभी भविष्य के गर्त में है। विधि विशेशज्ञों की मानें तो जूना अखाड़ा कागडी लिखापढ़ी में बिल्कुल भी मजबूत नहीं है। ऐसे में यदि वह साम-दाम-दंड और भेद के जरिए मंदिर पर काबिज भी हो गया तो अदालत में न सिर्फ उसे मुंह की खानी पड़ेगी बल्कि जिला प्रशासन की भी कोर्ट में जवाब देना पड़ेगा।
अमरकंटक और चैतन्य गिरी ने बताया अपनी जान को खतरा
मंगलवार सुबह ब्रम्हलीन महंत को भू-समाधि दे दी गई। जिला प्रशासन ने सुरक्षा का घेरा ऐसा बनाया था कि किसी भी तरह का टकराव या फिर बवाल न हो सके। श्यामगिरी के दोनों शिष्यों अमरकंटक और चैतन्य गिरी को बैरीकेडिंग के पास ही रोक लिया गया। काफी देर बाद अधिकारियों के कहने पर पुलिस अफसर दोनों को समाधि स्थल ले गए। जहां दोनों शिष्यों ने अपने गुरु को पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। इसके बाद अमरकंटक और चैतन्य गिरी ने प्रेस कांफ्रेंस कर अपना पक्ष रखते हुए जूना अखाड़े के पदाधिकारियों पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए। इतना ही नहीं अमरकंटक और चैतन्य गिरी ने ये भी आरोप लगाया कि उनके गुरु की रहस्यमय तरीके से जान चली गई। अब उन दोनों की जान को भी खतरा है।
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