-“सियासी शतरंज” की “बिसात” पर “शह-मात” का दौर Start
-योगी के "हठ योग" से बैकपुट पर है "दिल्ली दरबार"
-J&K के LG की Delhi में मौजूदगी से अटकलों का बाजार गर्म
Yogesh Tripathi
Uttar Pradesh में “सियासी शतरंज” की “बिसात” पूरी तरह से बिछ चुकी है। दिल्ली और लखनऊ “दरबार” के बीच शह और मात का दौर Start है। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल (LG) मनोज सिन्हा की मौजूदगी शनिवार से दिल्ली में ही है। जिसकी वजह से न सिर्फ राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी है बल्कि अटकलों का बाजार भी सत्ता के गलियारों में काफी गर्म है। हालांकि मनोज सिन्हा की मौजूदगी के पीछे जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ यात्रा और विधान सभा चुनाव के मुद्दे को लेकर मीटिंग की बात कही जा रही है। वहीं, दूसरी तरफ योगी के “योग हठ” से दिल्ली “दरबार” और BJP के मातृ संगठन RSS के शीर्ष नेतृत्व के बीच भी तल्खी थोड़ी बढ़ी बताई जा रही है। शायद यही वजह है कि RSS प्रमुख ने भोजन आमंत्रण को स्वास्थ्य ठीक न होने की बात कहकर अस्वीकार कर दिया। जानकारों की मानें तो सूबे की सियासत के लिहाज से ये सप्ताह कापी महत्वपूर्ण और उथल-पुथल भरा रहने वाला है।
सोशल मीडिया पर चर्चाओं और खबरों की मानें तो संडे को UPBJP प्रभारी B.L Santosh ने गवर्नर आनंदीबेन पटेल को जो बंद लिफाफा सौंपा है, उसमें प्रधानमंत्री का “पैगाम” बताया जा रहा है। चर्चाओं की मानें तो यह बंद लिफाफा “दिल्ली दरबार” की रणनीति का एक बड़ा हिस्सा है। राजनीति के जानकार इस बंद लिफाफा को “ऑपरेशन इमरजेंसी” भी मान रहे हैं। चर्चा इस बात की भी है कि B.L Santosh ने विधान सभा स्पीकर ह्दय नारायण दीक्षित से बंद कमरे में मुलाकात के दौरान “दिल्ली दरबार” का पैगाम सुना चुके हैं।
क्या बंद लिफाफा में है़ विधायकों के हस्ताक्षर ?
बंद लिफाफा को लेकर कयास और अटकलों का दौर जारी है। सोशल मीडिया पर चर्चाओं की मानें तो बंद लिफाफा में लंबे समय से नाराज चल रहे विधायकों के हस्ताक्षर और पत्र भी हो सकते हैं। ऐसे विधायकों की संख्या 100 से अधिक होने की चर्चा है। यहां थोड़ा फ्लैश बैक में जाएंगे तो पता चलेगा कि 100 से अधिक विधायक करीब डेढ़ साल पहले नाराजगी जताते हुए धरना तक दे चुके हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो Uttar Pradesh के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तेवर और मिजाज से दिल्ली हाईकमान पूरी तरह से परिचित है। इस लिए वह किसी भी तरह की किरकिरी से बचने के लिए वो हर कवायद की जा रही है ताकि मुंह की न खानी पड़े।
क्या विधान सभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं CM ?
Uttar Prdaesh के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली किसी से छिपी नहीं है। वे हमेशा अपनी बात पर कायम रहते हैं। ये बात भी BJP के शीर्ष को बखूबी मालुम है। सोशल मीडिया में चर्चा है कि मुख्यमंत्री दिल्ली से मिल रहे तमाम संदेशों के बाद भी तनिक भी झुकने को तैयार नहीं है। जिसकी वजह से दिल्ली में बैठे शीर्ष नेतृत्व का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है। चर्चा इस बात की भी हो रही है कि यदि योगी ने अपना “हठ योग” दिखा दिया तो फिर क्या होगा ? शायद नुकसान काफी बड़ा हो सकता है। मतलब साफ है कि मुख्यमंत्री ने यदि गवर्नर से मुलाकात कर विधान सभा को भंग करने की सिफारिश कर दी तो Uttar Pradesh का “राजनीतिक समीकरण” क्या होगा ?
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस “इमरजेंसी ऑपरेशन” के लिए ही लिफाफे में “पैगाम” सौंपा गया है। जिसका प्रयोग विधान सभा भंग करने की सिफारिश पर किया जा सकता है। मतलब साफ है कि ऐसी स्थिति में गेंद गवर्नर के पाले में रहेगी और वह विधायकों के नाराजगी की बात कहकर प्लोर टेस्ट भी करवा सकती है। फ्लोर टेस्ट के दौरान सबसे अहम भूमिका विधान सभा स्पीकर की रहेगी। इस लिए शायद उनको भी “पैगाम” दिया जा चुका है। हालांकि इन सब बातों की कोई अधिकारिक पुष्टि नहीं है। सिर्फ कयास और अटकलें ही लगाई जा रही हैं। खुद प्रदेश प्रभारी B.L Santosh ने गवर्नर और स्पीकर से मुलाकात के बाद कहा है कि सामान्य मुलाकात है। राजनीति और सियासत से कोई लेना-देना नहीं है।
Delhi में मौजूद हैं जम्मू-कश्मीर के गवर्नर Manoj Sinha
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल Manoj Sinha की मौजूदगी शनिवार से दिल्ली में बनी हई है। उनकी मौजूदगी के पीछे का तर्क जम्मू-कश्मीर में विधान सभा का चुनाव और 28 जून से शुरु होने वाली अमरनाथ यात्रा की बात कही जा रही है। खुफिया सूत्रों की मानें तो मनोज सिन्हा ने संडे को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात कर चुके हैं। श्रीसिन्हा ने केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला के साथ भी बैठक की। संडे को ही दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के शीर्ष अफसरों की एक बैठक भी हुई। इसमें जम्मू-कश्मीर के निवर्तमान प्रमुख सचिव बीवीआर सुब्रमण्यम, उनके उत्तराधिकारी अरुण मेहता, इंटेलीजेंस ब्यूरो (IB) के चीफ अरविंद कुमार, जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह और एडीजी समेत कई अफसर मौजूद रहे। हालांकि अभी तक गृह मंत्रालय (HMO) की तरफ से अभी तक इस संबंध में कोई अधिकारिक पत्र नहीं जारी किया गया है। चर्चाओं की मानें तो जल्द ही मनोज सिन्हा की प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग भी हो सकती है।
बंद लिफाफा में अटकी है “सरकार” की जान
मीडिया रिपोर्ट्स और खुफिया सूत्रों की मानें तो “बंद लिफाफा” में ही “सरकार” की जान अटकी है। इस लिफाफा को दिल्ली दरबार का “तुरुप का इक्का” बताया जा रहा है। चर्चा है कि आवश्यकता पड़ने पर ही शायद इस लिफाफा में भेजे गए “पैगाम” को अमल में लाया जाए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यदि “दिल्ली दरबार” की बात मान लेते हैं तो शायद बंद लिफाफा को खोलने की आवश्यकता ही न पड़े।
योगी के “योग हठ” के पीछे कौन ?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बेहद ईमानदार छवि के नेता है, इसमें कोई शक नहीं। साढ़े चार साल के कार्यकाल में किसी भी प्रकार के घोटाले का एक कोई आरोप अभी तक उन पर नहीं लगा है। उनके कार्य करने की स्टाइल किसी से छिपी नहीं है। वो भी तब जब सरकार बनते ही उनके साथ दो डिप्टी सीएम और एक सुपर सीएम को परमानेंट लगा दिया गया। संगठन स्तर पर भी मुख्यमंत्री की नहीं चली। दिल्ली दरबार के इशारे पर ही साढ़े चार साल से सबकुछ हो रहा है। फिर इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी अफसर अरविद शर्मा को “दूत” बनाकर लखनऊ भेजा जाता है। सीनियर IAS अफसर अरविंद शर्मा की नौकरी के अभी दो साल शेष थे। उन्होंने वीआरएस लिया और लखनऊ पहुंच गए। 10 दिन के अंदर उनको MLC भी बना दिया गया।
दोनों डिप्टी सीएम, प्रदेश अध्यक्ष, तमाम नौकरशाह और मंत्री-विधायक अरविंद शर्मा से मिलने पहुंचे लेकिन सख्त तेवरों वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अरविंद शर्मा से मुलाकात तक न कर “दिल्ली दरबार” को साफ-साफ मैसेज देकर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए। शायद इस तल्खी की ही वजह रही कि दो दिन पहले UPCM Yogi Adityanath को उनके जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने Twitter पर Tweet कर बधाई संदेश तक नहीं दिया। जबकि प्रधानमंत्री के बारे सर्वविदित है कि किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर वह सुबह-सुबह ही Tweet कर बधाई दे देते हैं।
चर्चा है कि पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गवर्नर से मुलाकात की थी तो उन्होंने दो टूक शब्दों अरविंद शर्मा को डिप्टी सीएम बनाकर गृह एवं गोपन विभाग देने और तमाम मुद्दों पर अपनी असहमति जता दी थी। यही वजह है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ गया। दो दिवसीय दौरे के बाद B.L Santosh और Radha Mohan Singh ने रिपोर्ट सौंपी तो आनन-फानन में गवर्नर और स्पीकर से मुलाकात करने के लिए B.L Santosh को भेज दिया गया।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर के साथ-साथ सांसद और हिन्दू महासभा के प्रमुख भी रहे हैं। यह बात सभी को मालुम है। चर्चाओं की मानें तो महाराज के तेवर और मिजाज से हर कोई परिचित है। इस लिए लिफाफा के जरिए “पैगाम” भेजा गया ताकि यदि कोई डैमेज हो तो उसे पहले से भेजे गए “पैगाम” के जरिए कंट्रोल किया जा सके। चर्चाओं की मानें तो RSS के कई शीर्ष पदाधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पक्ष में मजबूती के साथ खड़े हैं। इन पदाधिकारियों ने “दिल्ली दरबार” से नाराजगी जाहिर कर योगी के नाराज होने पर हिन्दुत्व की छवि वाले एजेंडे को नुकसान होने की बात भी बता दी है।
वैसे RSS के पदाधिकारियों को मानें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में Uttar Pradesh में 2022 का Election बीजेपी लड़ेगी। सरकार को किसी भी तरह का खतरा नहीं है। संगठन में आंशिक फेरबदल अवश्य संभव है। RSS प्रमुख मोहन भागवत समेत कई शीर्ष पदाधिकारी योगी आदित्यनाथ की छवि के जरिए 2022 में यूपी का किला फतेह करने का "ब्लूप्रिंट" भी बना चुके हैं। योगी आदित्यनाथ को लेकर RSS ने अपना मैसेज भी शायद दिल्ली हाईकमान को भेज दिया है।
राजनीति के जानकार भी यही कह रहे है कि योगी को बदलना दिल्ली हाईकमान के लिए आसान नहीं है। बदलाव की स्थिति में BJP को चुनाव से पहले भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इतना ही नहीं इसका सीधा प्रभाव केंद्र की राजनीति पर भी पड़ेगा। साथ ही हिन्दुत्व एजेंडे की छवि को भी नुकसान होगा। कुल मिलाकर यूं कहें कि Yogi Aditya Nath एक बड़े "छत्रप" के तौर पर खुद को स्थापित कर चुके हैं। शायद यही वजह है कि किसी भी एक्शन से पहले शीर्ष को 100 बार सोचना होगा।
Note----खबर सोशल मीडिया पर हो रही चर्चाओं और मीडिया रिपोर्टस के इनपुट पर है। BJP, RSS और संगठन के जिम्मेदार की तरफ से कोई अधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।
Post A Comment:
0 comments: