-UP में पंचायत चुनाव के साथ BJP ने शुरु कर दी विधान सभा की तैयारियां

-2022 चुनाव से पहले Digital माध्यम से बूथों को मजबूत कर रही BJP

 


Yogesh Tripathi

Uttar Pradesh में विधान सभा चुनाव (2022) के मद्देनजर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपनी चुनावी तैयारियां शुरु कर दी हैं। Covid-19 संक्रमण के मद्देनजर इस बार BJP के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी चुनावी रणनीति थोड़ी बदल दी है। Digital संचार के माध्यम से BJP ने करीब-करीब अपना चुनावी बिगुल फूंक दिया है। कुल मिलाकर हम यूं कहें कि Uttar Pradesh के विधान सभा चुनाव में BJP अपने विरोधियों को “Digital War” चुनावी समर में विरोधियों को चारो खाने चित्त करने का ब्लूप्रिंट बना चुकी है। इसके मुकाबले विपक्षी दल चुनाव की तैयारियों से अभी कोसों दूर दिखाई दे रहे हैं।  

भाजपा की इस रणनीति से विपक्षी दल अभी बेखबर हैं। अंदरखाने से जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक पंचायत चुनाव के साथ-साथ भाजपा ने विधान सभा (2022) के चुनाव की तैयारियां Start कर दी थी। Corona की दूसरी लहर जब डंकमार रही थी तो उसकी रोकथाम के लिए Lockdown लगाना पड़ा। लॉकडाउन के दौरान ही बीजेपी संगठन अपना बूथ मजबूत करने में जुट गया। Digital संचार माध्यम से भाजपा ने अपने बूथ को और भी अथिक मजबूत किया। पन्ना प्रमुख बनाने से लेकर अपना बूथ सबसे मजबूतका नारा देने वाली भाजपा ने Lockdown के दौरान Uttar Pradesh के 1,65,000 से अधिक बूथों को WhatsApp ग्रुप से जोड़ लिया है।

सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन यह सच है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि BJP का सोशल मीडिया का तंत्र सबसे अधिक मजबूत है। देश में करीब 56 करोड़ से अधिक की आबादी WhatsApp का प्रयोग करती है। जिसमें करीब 36 करोड़ लोग भाजपा से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से जुड़े हैं। यही वजह है कि BJP (संगठन) या फिर शीर्ष नेताओं की बातें बेहद थोड़े ही समय में जन-जन तक मैसेज के जरिए पहुंचा दी जाती हैं। 

खास बात ये है कि BJP (ITCell) इन WhatsApp ग्रुपों के जरिए हिन्दुत्व का विरोध करने वालों के अतिरिक्त हर उस व्यक्ति तक पहुंच बनाने की भरपूर कोशिश करता है। जिसे किसी न किसी तरीके से अपने पाले में लाने की पूरी संभावना दिखाई दे रही हो। यह कहना गलत नहीं होगा कि इसका एडवांटेज चुनावों में सीधे तौर पर भाजपा को मिलता है। 

Modi-Yogi की लोकप्रियता में गिरावट

कोरोना वैश्विक महामारी की दूसरी लहर में लाखों लोगों की जान चली गई। यूपी में कोरोना का त्राहिमाम किसी से छिपा नहीं हैं। अपनों की मौत के बाद उनकी लाशों को लेकर लोगों को घाटों पर टोकन लेकर लाइन लगाने तक के लिए विवश होना पड़ा। हालात इतने भयावह हो गए कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग मौत के बाद अपने करीबी लोगों का अंतिम संस्कार भी ठीक ढंग से नहीं कर सके।

हजारों की संख्या में लोगों ने शवों को गंगा के किनारे रेती में दफना दिया। कुछ लोगों ने गंगा में ही शवों को प्रवाहित कर दिया। जिसकी तस्वीरें और वीडियो जब सोशल मीडिया पर Viral हुईं तो प्रदेश के योगी आदित्यनाथ सरकार की किरकिरी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हुई। यही वजह है कि हिन्दूवादी नेता के तौर पर अपनी छवि चमका चुके देश के प्रधानमंत्री Narendra Modi और यूपी के मुख्यमंत्री Yogi Adityanath की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई है।

दोनों नेताओं की छवि को ठीक करने के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) बहुत जल्द महाअभियान” Start करने जा रहा है। इसकी शुरुआत Uttar Pradesh से होने की पूरी संभावना है। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले पिछले तीन दिन से प्रदेश में डेरा डालकर संघ के प्रचारकों के साथ मीटिंग कर तमाम बिन्दुओं पर फीडबैक भी ले रहे हैं।

UP में खिसक रही है BJP की नींव

Corona की दूसरी लहर में हजारों जिंदगियां वॉयरस ने छीन ली। आपदा प्रबंधन के मैनेजटमेंट में योगी सरकार किस कदर औंधे मुंह गिरी, यह बात किसी से छिपी नहीं है। अपनी नाकामयाबियों पर पर्दा डालने के लिए सरकार ने तरह-तरह के जतन कर लिए हैं लेकिन सारे प्रयास व्यर्थ साबित हो रहे हैं। यही वजह है कि RSS के दिग्गज स्वयं कमान संभालने को मजबूर हुए हैं।

चर्चाओं की मानें तो सूबे में करीब 19 फीसदी सवर्ण जातियों के बल पर सत्ता पर काबिज होने वाली BJP का जनाधार तेजी से गिरा है। गैर यादव, पिछड़ों और गैर जाटव दलितों में यादव, जाटव और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफरती माहौल पैदा कर BJP ने Uttar Pradesh की सियासत में अपना जनाधार काफी मजबूत किया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत का परचम लहराने के बाद 2017 के विधान सभा चुनाव में तो भाजपा ने विरोधियों की लुटिया तक डुबो दी थी।

लेकिन अब BJP का तिलिस्म टूट रहा है। BJP समर्थक माने जाने वाले गरीब दलित, पिछड़ी जातियों के लोग कोरोना महामारी के दौरान कुव्यवस्था से त्रस्त होकर अब दूसरे दलों के चौखट की तरफ बढ़ रहे हैं। उदाहरण के तौर पर करीब 11 फीसद आबादी वाला मल्लाह, केवट, निषाद समुदाय का जीवन तबाही की ओर है। नदियों के किनारे बसेरा करने वाले इस समुदाय के सैकड़ों लोग कोरोना महामारी में मर गए लेकिन सरकार ने उनकी सुध तक नहीं ली।

इस समुदाय के पास अब दूसरा संकट है। नदी में लाशों के बहने से समुदाय को संक्रमण का खतरा है। मछलियों की बिक्री नहीं होने से मछुआरों की जीविका भी खतरे में है। यही वजह है कि इस समुदाय के साथ-साथ कई और जातियों का भी भाजपा से मोहभंग हो चुका है।

 

 

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