• 15 सितंबर 2004 को में BJP MLA पर हुआ था लाठीचार्ज 
  • लाठीचार्ज में विधायक का पैर टूटा था, कई कार्यकर्ता हुए थे घायल 
  • बिजली कटौती के खिलाफ भाजपा के विधायक कर रहे थे प्रदर्शन
  • मामले में 19 साल बाद विधान सभा की विशेष अदालत ने दी सजा 
उत्तर प्रदेश विधान सभा की विशेष अदालत में बावर्दी झुके इन जवानों के कंधों से क्या UP Police का इकबाल बुलंद होगा...? 

Yogesh Tripathi

आजादी के बाद हमें अपना संविधान मिला...संवैधानिक व्यवस्थाएं मिलीं...अधिकारों की पोटली के साथ-साथ दायित्वों का थैला भी मिला...शासन प्रशासन को लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के रूप में संवैधानिक स्तंभ भी मिले... हम भारत के लोगों को संवैधानिक अधिकारों का तोहफा मिला। वहीं कर्तव्य निर्वाहन की फेहरिस्त भी मिली। सबसे बड़ी ताकत आमजन को सरकारें बनाने व उसे बदलने की शक्ति मिली लेकिन असल ताकत तीनों संवैधानिक संस्थाओं के पास ही निहित रही। हाल में ही Uttar Pradesh की विधान सभा में एक विशेष अदालत लगी। जिसमें Police Officer's और उनके मातहतों के साथ-साथ PPS की सेवा देने के बाद IAS की सेवा से रिटायर्ड हो चुके अधिकारी को एक दिन के कारावास की सजा मुकर्रर की। यह घटना वाकई बेहद चौंकाने वाली थी। साथ में एक बडा संदेश देने वाली भी ।

तत्कालीन SO ऋषीकांत शुक्ला (वर्तमान में CO)

हमारे "माननीयों" (विधान सभा सदस्यों और संवैधानिक पदासीन जनप्रतिनिधियों को इससे अपमान का बदला लिया जाने का गर्व छलका हो, उनकी जीत हुई हो, लेकिन ऐसे हालात क्यूं पनपते हैं...? आगे से ऐसी स्थितियां न उत्पन्न हों इसका रास्ता भी इन्हें ढूंढना होगा। वहीं पुलिस प्रशासन के लिए भी यह एक संदेश है कि वे भी ऐसी ताकत का प्रयोग दुर्दांत अपराधियों एवं राष्ट्र विरोधी तत्वों पर ही प्रयोग करें। अंत में एक बात और देश में दुर्दांत अपराधी, डकैत, राष्ट्रविरोधी तत्व कैसे सदनों में सुशोभित हो रहे हैं...? उनका ठिकाना सिर्फ जेल है और वहीं पर होना चाहिए। माननीय (जनप्रतिनिध) अपना कार्य करें। मीलार्ड न्याय दें, सजा दें तथा कार्य पालिका अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करें। यदि विधान सभा, लोकसभा, (न्यायपालिका की भूमिका) निभाएगी तो ज्यूडीशियरी आखिर क्या करेगी...? क्या इससे पुलिस का मनोबल कमजोर नहीं होगा...? 19 साल पहले जिस समय लाठीचार्ज की यह घटना हुई थी उस समय अब्दुल समद (PPS Officer) थे, मतलब राजपत्रित अधिकारी, अब्दुल समद के बाद ऋषिकांत शुक्ला (Statiom Officer) के पद पर थे बाकी चार पुलिस कर्मी कांस्टेबल के पद पर तैनात थे। क्या सारा दोष इन्हीं पुलिस कर्मियों का था...??? SSP/SP की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए थी कि आखिर किन परिस्थितियों में और किसके आदेश पर लाठीचार्ज बीजेपी विधायक और उनके समर्थकों पर किया गया।  

तत्कालीन कांस्टेबल विनोद मिश्रा (वर्तमान में SHO)

जरा सोचिए एक Police Officer 2005 में Kanpur के दुर्दांत (D-2 गैंग के सूचीबद्ध क्रिमिनल) रफीक को कोलकाता Arrest करने के लिए पहुंचता है तो वहां उसकी मुठभेड़ होती है। तंग गलियों में स्वचालित असलहों से गोलियां दागी जाती हैं। ये ईश्वर की ही कृपा थी कि किसी गोली पर Police Officer का नाम नहीं लिखा था...जाबांज अफसर उस अपराधी को अपनी छोटी सी पुलिस टुकड़ी के बल बूते उसे Arrest कर लेता है। कोलाकात की कोर्ट में पेशी कर अदालती कार्यवाही के बाद किसी तरह Kanpur लेकर पहुंचता है। अखबारों में सुर्खियां तो मिलती हैं लेकिन किसी माननीय या नेता ने यह सोचा है कि यदि बदमाश की गोली उस Officer के लग जाती तो फिर क्या होता...? उसके परिवार का क्या होता...? क्या तब भी इंसाफ दिलाने के लिए ऐसे ही "विधान सभा" में विशेष अदालत लगाई जाती...? शायद नहीं....कोलकाता जाने का पैसा क्या सरकार और शासन ने दिया होगा ...? बिल्कुल नहीं...मुखबिरों के संजाल पर जो खर्चा आया होगा क्या वह भी शासन से मिला होगा...? कतई नहीं...

तत्कालीन विधायक सलिल विश्नोई पर लाठीचार्ज करते पुलिस कर्मी

UP Police के इस Officer को वर्ष 2002 में कलक्टरगंज थाने की नयागंज चौकी में तैनाती मिली। उस समय पुलिस की संचार प्रणाली आज की तरह बेहतर नहीं थी। स्मार्ट फोन नहीं थे। सर्विलांस सिस्टम का प्रयोग तब अधिकांशत: STF ही करती थी। शहर के SSP थे राजेंद्र पाल सिंह (R.P Singh) चार दिन पहले ही सेवानिवृत हुए हैं। चौकी इंचार्ज को जरिए मुखबिर सूचना मिली कि पूर्वांचल के एक बड़े गिरोह की शहर में मौजूदगी है। गिरोह जेलर की हत्या करने आया है। लग्जरी गाड़ियों से गिरोह के लोग थोड़ी देर में निकलेंगे। लेकिन चौकी इंचार्ज ने देरी किए बगैर ही अपने चार सिपाहियों के साथ कार की घेराबंदी कर ली। मुठभेड़ के बाद सभी की गिरफ्तारी हुई। थाने में उतरते ही पूर्वांचल के इस बाहुबली के तेवर से न सिर्फ बड़े-बड़े अफसरों ने पसीना छोड़ दिया बल्कि मीडिया भी उसके तू-तड़ाके से बैकफुट पर आ गई। यह बाहुबली कोई और नही अभय सिंह था। जो बाद में अयोध्या से विधायक भी बना। अभय सिंह कुछ समय पहले ही बाहुबली धनंजय सिंह पर कातिलाना हमला करके फरार हुआ था। अभय सिंह को छुड़ाने के लिए पूरी रात हर राजनीतिक दलों के दिग्गज नेताओं के फोन घनघनाते रहे। दूसरे प्रांत के दो पूर्व मख्यमंत्रियों तक ने अभय की रिहाई के लिए उस समय फोन किया था। जरा सोचिए उस समय समय उस Officer के दिल पर क्या बीती होगी...? जिसे उसने जान की बाजी लगाकर पकड़ा था, और यदि न पकड़ता तो वह एक बड़ी वारदात को अंजाम देकर भाग निकलता। 

तत्कालीन SSP से इस बाहुबली का संवाद भी काफी कड़क था। संवाद से पहले उसे शहर की मशहूर लस्सी पिलाई गई फिर इंसपेक्टर के कक्ष में ही गिरदा मंगवाया गया ताकि वह माफिया आराम से बैठकर बातचीत कर सके। करीब-करीब सभी राजनीतिक दलों के आकाओं का फोन आने के बाद पुलिस विभाग के मातहत लाचार हो गए। लिखापढ़ी कर कोर्ट में पेशी तो की गई लेकिन माफिया की आवभगत किसी दामाद से कमतर नहीं थी। अभय सिंह के साथ मुख्तार अंसारी का सगा भांजा मोहम्मद ताहिर भी Arrest हुआ था...SSP के यह कहने पर लोकल हीरो को लॉकअप से बाहर लाकर आवभगत करो...इसके बाद ताहिर के साथ जो हुआ वो लिखा नहीं जा सकता...लेकिन अभय का कुछ भी नहीं बिगड़ा था. आखिर क्यूं...? क्यों कि न सिर्फ तमाम माननीय बल्कि उस समय दो प्रांतों के ताकतवर मुख्यमंत्रियों के फोन घनघनाए थे...सोचिए तब क्या बीती होगी उस पुलिस अधिकारी के दिल पर...?

दरअसल इस Officer का नाम ऋषिकांत शुक्ला है। वर्तमान में उनकी तैनाती क्षेत्राधिकारी सफीपुर (उन्नाव) के पद पर है। ऋषिकांत शुक्ला ने अंडरवर्ल्ड डान दाउद इब्राहिम से ताल्लुक रखने वाले D-2 गैंग के न सिर्फ नेटवर्क को पूरी तरह से खत्म किया बल्कि शहर और प्रदेश के तमाम कुख्यात बदमाशों के Encounter भी किए। इसमें वर्ष 2004 को किदवईनगर थाना एरिया के तार बंगलिया रोड पर मुन्ना बजरंगी गैंग के दो शार्प शूटरों अमित राय और चिन्टू का भी एनकाउंटर शामिल है। ये दोनों अपराधी मुख्तार अंसारी गिरोह से भी जुड़े थे। पूर्वांचल की एक जेल में इन दोनों शूटर्स ने एक पार्षद को 26 गोलियां मारकर मौत के घाट उतार दिया था। उसके बाद दोनों ने शहर में पनाह ले ली थी।

 क्या कहते हैं सीनियर जर्नलिस्ट ...?

 

अनूप बाजपेयी (पूर्व अध्यक्ष, कानपुर प्रेस क्लब)

"विधायिका और कार्यपालिका के बीच में हमेशा संतुलन बनाए रखने वाली न्यायपालिका की अनुपस्थिति इस पूरे प्रकरण में समझ से परे है। ये पूरा प्रकरण पुलिस के बुलंद इकबाल को शर्मशार करने वाला है। क्यों कि बावर्दी फोर्स के झुके कंधे कभी किसी को पसंद नहीं आते हैं। इस पूरे प्रकरण में सजा सुनाने और सजा भोगने दोनों पक्षों को पता है कि असली दोषी कौन था।...? "प्यादों" को कटघरे में खढ़ा करना पचा नहीं। ये सब एक Formality जैसा लगा। आशा करते हैं कि भविष्य में कभी ऐसा खराब दृष्य दोबारा देखने को नहीं मिलेगा। इसके लिए शासन को एक मजबूत कानून बनाना होगा। Police Officer's को भी चाहिए कि वह सत्ता के दबाव में अपने कर्तव्यों और कार्यशैली को बिल्कुल भी न भूलें..."

 

 

 

 

 

शैलेंद्र शर्मा (फ्री लांस जर्नलिस्ट)
" हमारे संविधान विदों ने देश के लिए जो संविधान बनाया, उसमें कोई भी व्यक्ति विशेष नहीं है। सवाल यह उठता है कि तब "विशेषाधिकार" की व्यवस्था क्यों बनीं...?Kanpur में 15 सितंबर 2004 को तत्कालीन BJP MLA सलिल विश्नोई के साथ जो हुआ, क्या उसके लिए सिर्फ और सिर्फ छोटे अधिकारी ही दोषी हैं..? तत्कालीन SSP/SP की भूमिका जांची गई...? बल प्रयोग का आदेश आखिर किसने दिया था...? निश्चित ही विधायक सलिल विश्नोई के साथ जो बल प्रयोग हुआ, उसे कम कर कानून की सम्मत धाराओं में Arrest किया जा सकता था। ऐसे प्रकरण दोबारा न हो पाएं इसके लिए ठोस नियम-कानून बने। विरोध करना जनप्रतिनिधि का हक है,यदि वे इसमें हद तोड़ते हैं तो पुलिस-प्रशासन को कानून सम्मत कार्यवाही करनी चाहिए साथ ही प्रोटोकाल का भी ध्यान रखना चाहिए। Police को 24 घंटे लगातार कार्य करना पड़ता है। इसका असर उसकी कार्यशैली पर भी पड़ता है। रही बात नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के बयान की तो वह ऐसा इस लिए बोल रहे हैं क्यों कि घटना उनके पिता स्वर्गीय मुलायम सिंह के कार्यकाल में हुई थी। यदि ऐसा ही उनकी पार्टी के किसी विधायक या उनके साथ पुलिस करती तब भी क्या वे पुलिस के पक्ष में ही खड़े होते...? ऐसे प्रकरणों का हल ढूंढना होगा, सियासत से कुछ हासिल नहीं होगा। शासन को भी पुलिस की समस्याओं, कार्य दशाओं, सियासी दबाव को समझना होगा। वो भी इंसान हैं, हमारे और आपके घर के ही सदस्य हैं। हर बात को प्रेस्टीज इश्यू नहीं बनाना चाहिए।"

 

 

 

 


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