- कैंट, आर्यनगर और सीसामऊ पर जिताऊ प्रत्याशी की तलाश
- अकबरपुर-रनिया और बिल्हौर पर चल रहा है गहरा मंथन
- अन्य सीटों पर पुराने “योद्धाओं” को करीब-करीब “ग्रीन सिग्नल”
Yogesh Tripathi
Kanpur का नाम जेहन में आते ही धूल-धुआं, गंदगी और जाम के दृश्य उभरने लगते हैं। कभी एशिया का “मैनचेस्टर” और मजदूरों का “मक्का” कहलाने वाले “कंपू नगरिया” में सियासी रंग चढ़ा हुआ है। Kanpur को Uttar Pradesh का Clock Tower City भी कहा जाता है। घंटाघर, लालइमली, बिजली घर, स्वरूप नगर और कोतवाली में अंग्रेजों की लगाई घड़ियां भले ही टिक-टिक न कर पा रही हों लेकिन गुजरे वक्त के सियासी दास्तां की ये “मूक गवाह” अवश्य हैं। कम लोग ही जानते होंगे कि इस शहर के मजदूर बहुल खलासी लाइन में ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म हुआ था। यही वजह रही कि “मजदूरों का मक्का” कहे जाने वाले Kanpur में लंबे समय तक लाल झंडा लहराता रहा था। 89 में सुभाषिनी अली को यहां की जनता (खासकर) मजदूरों ने चुनाव में विजयश्री दिलाकर संसद भवन भी भेजा। कांग्रेस के साथ-साथ समाजवादियों और जनसंघ (अब भाजपा) का भी यह शहर गढ़ रहा है। समय के साथ-साथ नेता और राजनीति बदलती रही...चुनाव प्रचार के तौर-तरीके भी बदले लेकिन जो अभी तक नहीं बदली वो है Kanpur की अलमस्त तबीयत...मुंह फट्ट होना और चुनावी अड्डेबाजी...
Uttar Pradesh Election 2022 का “शंखनाद” हो चुका है। कुछ सीटों पर सीधी फाइट के आसार हैं तो कुछ पर त्रिकोणीय संघर्ष अभी से दिख रहा है। कुछ सीटें एकतरफा मानी जा रही हैं। हालांकि अभी काफी वक्त बाकी है, सो फिज़ा बदल भी सकती है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) की प्रतिष्ठा दांव पर है तो कांग्रेस और सपा का भी कड़ा इम्तिहान है। अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए BJP हाईकमान कानपुर नगर और देहात की पांच सीटों पर तगड़ी माथापच्ची कर रहा है। बाकी सीटों पर हाईकमान ने करीब-करीब पुराने “योद्धाओं” को ही ग्रीन सिग्नल देने का मन बना लिया है। 21 जनवरी से 23 की सुबह तक भाजपा कभी भी अपने प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी कर सकती है।
कैंट विधान सभा
Kanpur की कैंट विधान सभा सीट पिछले कई चुनाव से भाजपा के पास रही थी लेकिन 2017 के चुनाव में यहां से भाजपा के टिकट पर लड़े तत्कालीन विधायक रघुनंदन सिंह भदौरिया को कांग्रेस-सपा गठबंधन के प्रत्याशी सोहैल अंसारी ने हरा दिया था। इस बार फिर से बीजेपी यह सीट वापस पाना चाहती है। इस सीट पर कई दिग्गजों ने टिकट के लिए अपनी दावेदारी कर रक्खी है। सूत्रों की मानें तो हाईकमान रघुनंदन सिंह भदौरिया और दक्षिण जिला के महामंत्री शिवराम सिंह (बाउवा ठाकुर) के नामों को लेकर काफी गंभीर है। वहीं राजनीति के जानकारों की मानें तो इस सीट पर प्रत्याशी वही घोषित होगा, जिस पर कैबिनेट मंत्री सतीश महाना की “कृपा” होगी।
आर्यनगर विधान सभा
आर्यनगर विधान सभा सीट भी बीजेपी के गढ़ वाली सीट मानी जाती है। हालांकि यहां पर 2017 के चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी अमिताभ बाजपेयी ने भाजपा के दिग्गज सलिल विश्नोई को चुनाव में पराजित कर दिया था। सलिल विश्नोई विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) बन चुके हैं। संघ और भाजपा के सूत्रों की मानें तो हाईकमान अमिताभ बाजपेयी को चुनावी “चक्रव्यूह” में घेरने के लिए किसी ब्राम्हण चेहरे पर दांव खेलने की कवायद में है। यहां पर कई नामों की चर्चा हो रही है। एक नाम बसपा के पूर्व मंत्री का भी चर्चा में है लेकिन उन्होंने अभी तक भाजपा ज्वाइन नहीं की है। पूर्व विधायक नीरज चतुर्वेदी की भी दावेदारी कमजोर नहीं मानी जा रही है। दो पूर्व छात्र नेताओं के नाम की भी चर्चा हो रही है। माना ये जा रहा है कि हाईकमान बिल्कुल आखिर में इस सीट पर प्रत्याशी के नाम की घोषणा करेगा।
सीसामऊ विधान सभा
सीसामऊ विधान सीट पर जीत के लिए भाजपा लंबे समय से प्रयासरत है लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है। सपा के हाजी इरफान सोलंकी यहां से विधायक हैं। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने इस सीट को जीतने के लिए करीब सवा साल पहले राज्यसभा सांसद और पूर्व डीजीपी ब्रजलाल को प्रभारी बनाया है। वह यहां के कार्यकर्ताओं से कई बार मीटिंग कर तमाम त्रुटियों के बारे में जानकारी हासिल कर चुके हैं। इस सीट पर पिछली बार भाजपा के सुरेश अवस्थी चुनाव हार गए थे। इस बार यहां से आर्यनगर से पूर्व विधायक रहे सलिल विश्नोई का नाम चर्चा में हैं। चर्चा इस बात की भी है कि हाईकमान आर्यनगर और सीसामऊ सीटों की शिफ्टिंग भी कर सकता है। मतलब साफ है कि सुरेश अवस्थी को ब्राम्हण होने की वजह से आर्यनगर सीट भी दी जा सकती हैं हालांकि वहां पर कई दावेदार पहले से मौजूद हैं। सीसामऊ की सीट पर ही चार्टेड अकाउंटेंट का नाम भी चर्चा में है। चार्टेड अकाउंटेंट RSS से जुड़े हैं और श्याम नगर में रहते हैं।
अकबरपुर-रनिया विधान सभा
इस विधान सभा पर हाईकमान के पास सिर्फ एक नाम प्रतिभा शुक्ला का भेजा गया है लेकिन उसके बाद भी माथापच्ची हो रही है। उसकी वजह Kanpur के रतनलाल नगर निवासी सतीश शुक्ला बताए जा रहे हैं। Portal के पास जो जानकारी है उसके मुताबिक सतीश शुक्ला ने एड़ी-जोटी का जोर लगा रक्खा है। प्रतिभा शुक्ला की टिकट यदि कटी तो उसके पीछे कई वजहें होंगी। इसमें एक बड़ी वजह कुछ दिनों पहले सांसद के खिलाफ उनका मुखर होना भी शामिल है।
बिल्हौर विधान सभा
बिल्हौर विधान सभा सीट 2017 में भगवती प्रसाद सागर ने भाजपा के टिकट पर जीती थी। कुछ दिन पहले भगवती प्रसाद सागर ने भाजपा से इस्तीफा देकर सपा ज्वाइन कर लिया। इस लिए इस सीट पर भाजपा को किसी नए जिताऊ चेहरे की तलाश है। हालांकि यहां पर तगड़ी दावेदारी पूर्व में शिवकुमार बेरिया के खिलाफ लड़ चुके काला बच्चा सोनकर के बेटे राहुल सोनकर की है। बीजेपी हाईकमान उनके नाम पर गंभीर है। लेकिन पेंच फंसा है पूर्व डीजीपी ब्रजलाल का। सूत्रों की मानें तो ब्रजलाल के बेहद करीबी इस सीट से टिकट मांग रहे हैं। उल्लेखनीय है कि राहुल सोनकर के पिता काला बच्चा बिल्हौर सीट पर शिवकुमार बेरिया के खिलाफ तीन दशक पहले चुनाव लड़े थे और करीबी अंतर से चुनाव हार गए थे। उसके बाद उनकी हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या के बाद दंगा भी हुआ था।
Note----किदवईनगर से वर्तमान विधायक महेश त्रिवेदी, गोविंदनगर से सुरेंद्र मैथानी, महराजपुर से सतीश महाना, बिठूर से अभिजीत सिंह सांगा के साथ-साथ घाटमपुर, रसूलाबाद, सिकंदरा, भोगनीपुर के विधायकों को फिर से टिकट मिलना करीब-करीब Final बताया जा रहा है। इन सभी के बाबत खुफिया इनपुट भी संगठन और शीर्ष नेतृत्व ने लिया है। सूत्रों की मानें तो एक-दो नामों को न चाहते हुए भी संगठन वर्तमान परिदृश्य को देखकर टिकट देने का मूड बना चुका है।
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