• डकैत बनने के पहले ही उस दिन मरते- मरते बचा था विक्रम मल्लाह
  • जुए की हार-जीत की लड़ाई में उसे मार डालने पर आमादा थे खड़गोई के ग्रामीण
  • बाबू सिंह गुर्जर ने फूलन का शारीरिक शोषण किया तो विक्रम ने उसे मार डाला

 


Dr. Rakesh Dwivedi

80 के दशक का यह वह दौर था जब इमरजेंसी खत्म होने को थी और आम चुनावों का शोर Start होने वाला था। तब दुबले- पतले शरीर का विक्रम मल्लाह पढ़ने- लिखने से मन उचाट कर ताश पत्तों की ओर आकर्षित हो गया। इन पत्तों में ही उसकी तलबगीरी खोई हुई थी। यमुना पट्टी का कुछ वातावरण ही ऐसा था, जहां पर यमुना की लहरों में जरायम का अवगुण भी घुल चुका था। इसके लिए भौगोलिक परिस्थितियां भी कम जिम्मेदार नहीं थीं। तभी तो युवकों के हाथ में किताब की जगह ताश के पत्ते दिखते थे। जिनको कुछ लायक बनना था, उन्हें घर छोड़ना पड़ा। लेकिन बाहर भी वही जा पाए, जिनको उनकी आर्थिक स्थिति ने इजाजत दी।

विक्रम के बारे में जानकारी देते ग्रामीण ।

यमुना के इस पार खड़गोई और उस पार औरैया का क्योटरा-गोहानी। खड़गोई में ठाकुर तो गोहानी में मल्लाह बहुलता है। तब सफर का साधन नाव थी, जिस पर दोनों पार के ग्रामीण सवार होते रहते थे। यह बात 1977 की है। होली करीब थी। नाव पर जुआ खेला जा रहा था। इसमें विक्रम मल्लाह भी शामिल था, जो तब फरार नहीं था। उस दिन विक्रम जुआ में एक बड़ी रकम हार बैठा। इस हार में खड़गोई के हेतराम को दोष खोजा गया। एक दिन हेतराम जब कालपी गए तो विक्रम ने उन्हें जान से मारने की कोशिश की। जान तब बच पाई जब उन्होंने जेब से कुछ रुपये नदी में उड़ा दिए। रुपये तैरते देख विक्रम के आदमी उन्हें उठाने लगे, तब तक उन्हें वहां से भागने का मौका मिल गया। जब इसकी जानकारी परिवार वालों को हुई तो वह विक्रम पर आग- बबूला हो उठे। अब तो सबक सिखाने की कसम खा डाली गई। जल्दी ही वह अवसर मिल गया। पता चला कि विक्रम यमुना घाट पर बैठा हुआ है। अपने सभी भाइयों तथा कुछ ग्रामीणों कर साथ हेतराम वहां पहुंचा। देखकर विक्रम ने बीड़ी पीने की इच्छा जताई। तब  हेतराम के भाई चेतराम बोले- बीड़ी नहीं सिगरेट तुम्हें पिबैहें । पलक झपकते चेतराम ने विक्रम को बाहों में जकड़ कर नदी में पटक दिया। इसके बाद जान से मारने की नीयत से उस पर प्रहार करने शुरू कर दिए गए। तब गांव के ही कुछ लोगों ने गुहार लगाई कि इसे जान से न मारो। जो कुछ हुआ सो हुआ , अब इसे छोड़ दो

विक्रम स्वभाव से बहुत गुस्सैल था। जान बच जाने पर उस दिन वह चला तो गया पर इसका बदला लेने को उस पर इस कदर सनक सवार हुई कि वह फरार होकर बाबू सिंह गुर्जर से जाकर मिला। बाबू सिंह उस वक्त फरारी जीवन काटकर एक छोटे से गिरोह का संचालन कर रहा था। बाद में इसी गैंग का हिस्सा श्रीराम, लालाराम, कुसमा नाइन, फूलन देवी आदि भी रहे। फरारी के बाद विक्रम मल्लाह चेतराम के परिवार के पीछे पड़ गया। कई बार उसने खड़गोई तक दबिश दी। 

 


चेतराम उस समय को यादकर बताने लगे कि पांचों भाइयों के लिए कठिन समय था। विक्रम जान से मार डालना चाहता था। इसलिए तीन भाइयों को घर से बाहर भेज दिया गया। हम दो भाई घर पर रहते थे लेकिन रात में घर पर न सो कर बीहड़ में जाकर सोते थे। जब तक वह जीवित रहा भय फिर भी बना रहा।

वर्ष 1979-80 तक बाबू गूजर का गिरोह एक बड़ा रूप ले चुका था। तब जातीय मनमुटाव बिल्कुल भी नहीं था। फूलन देवी जब गैंग में पहुंची और बाबू गुर्जर उसके साथ यौन उत्पीड़न करने लगा तो विक्रम सजातीय महिला के साथ उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं कर पाया। एक दिन विक्रम ने बाबू गुर्जर को मौत के घाट उतार दिया। इस हत्या के बाद गिरोह जातियों के खांचे में बंट गया। अब श्रीराम और लालाराम को मल्लाहों की ताकत को देखकर लगा कि कहीं विक्रम गिरोह की कमान न संभाल ले।   एक रात मौका पाकर खड़गोई के उस पार बेजामऊ मौजे में नीम के पेड़ों के नीचे श्रीराम और लालाराम ने विक्रम मल्लाह को मार डाला।

बताते हैं कि विक्रम मल्लाह को मारने की फिराक में श्रीराम और लालाराम हैं, तब इसकी जानकारी खड़गोई के कई लोगों को थी। यहां के लोग चाहते भी थे कि विक्रम मारा जाए। विक्रम के मारे जाने की तारीख तो चेतराम को ठीक से याद नहीं पर इतना जरूर बताते हैं शायद फरवरी या मार्च का महीना था। जहां पर विक्रम को मारा गया वह स्थान खड़गोई के यमुना के किनारे साफ दिखाई देता है। वहां खड़े तीन पेड़ उस दास्तां की मूक गवाही अभी भी दे रहे हैं। विक्रम मल्लाह फूलन देवी का प्रेमी था। यह बात पूरा गिरोह जान चुका था। इसीलिए उसके मारे जाने के बाद फूलन पर भी तमाम जुल्म हुए। प्रेमी की हत्या और अपने ऊपर हुए जुल्मों का बदला लेने को फिर फूलन ने मुस्तकीम और मानसिंह की मदद से अपना गिरोह बनाया। 14 फरवरी 1981 को बेहमई में जाकर धावा बोला था। इसमें 22 ग्रामीणों की हत्या की गई थी। इसमें 19 ठाकुर तीन अन्य बिरादरी के लोग थे। 

 

Note----Dr. Rakesh Dwivedi ने करीब दो दशक तक तक अमर उजाला अखबार में डेस्क और मुरादाबाद के साथ-साथ हिन्दुस्तान अखबार में अपनी सेवाएं दी हैं। वह लंबे समय तक हिन्दुस्तान अखबार में  ब्यूरो चीफ रहे हैं...वर्तमान में वह "अरविंद माधुरी तिवारी महाविद्यालय" के प्राचार्य हैं। 

 

 

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