UPCM के कार्यक्रम का विरोध करने जा रही करिश्मा को पुलिस जबरन खींचकर ले गई

गोविंद नगर विधान सभा (उपचुनाव) में कांग्रेस प्रत्याशी हैं करिश्मा

CM का विरोध करने सेंट्रल पार्क समर्थकों के साथ जा रही थीं करिश्मा

Police के रोकने पर भिड़ीं तो महिला सिपाहियों ने जबरन खींचा

सोशल मीडिया पर जमकर Viral हो रही हैं करिश्मा की फोटो

दिल्ली यूनिवर्सिटी की पदाधिकारी रह चुकी हैं करिश्मा

NSUI का राष्ट्रीय महासचिव भी रह चुकी हैं करिश्मा ठाकुर

Yogesh Tripathi

 
करिश्मा को पुलिस से बचाने की कोशिश करता कांग्रेस कार्यकर्ता।
माथे पर काली पट्टी। पैर में स्पोर्ट्स शूज और पीछे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का हुजूम। नाम करिश्मा ठाकुर। पहचान दिल्ली यूनिवरस्टी की पदाधिकारी और कांग्रेस के स्टूडेंट विंग भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI) की नेशनल सेकेट्री। उन्हें नई पहचान कांग्रेस ने गोविंदनगर विधान सभा उपचुनाव में प्रत्याशी बनाकर दी है। 25 साल की इस ऊर्जावान नेत्री के तेवरों को देख सैकड़ों पुलिस वाले भी ठिठक गए। तेवरों को देख साफ-साफ लग रहा था कि ये युवा नत्री पुलिस की लाठी खाने का इरादा लेकर ही घर से निकली है। पुलिस वाले भी हक्का-बक्का थे कि आखिर करें तो क्या करें ? महिला पुलिस आगे बढ़ी तो करिश्मा ने छात्रसंघ स्टाइल में अपने तेवर दिखाए। लेकिन चूंकि मामला CM योगी आदित्यनाथ के विरोध का था लिहाजा महिला पुलिस ने जोर-जबर्दस्ती शुरु कर दी। बस फिर क्या था करिश्मा ठाकुर सड़क पर ही महिला पुलिस से भिड़ गईं। काफी जद्दोजहद के बाद महिला पुलिस ने हिरासत में लेकर उन्हें गाड़ी में बैठाया।

हिरासत में लिए जाने के बाद जब पुलिस ने करिश्मा को वाहन में बैठाया तो  उसके बाद भी वह बाहर चेहरा निकाल नारेबाजी करती रहीं।

90 के दशक में चर्चित नेत्री थीं सरला सिंह और आमना बेगम


करिश्मा ठाकुर ने यूं तो स्टूडेंट्स पॉलिटिक्स से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की है। लेकिन उनके तेवर और स्टाइल बिल्कुल मझे हुए नेता के तौर पर दिख रहे हैं। कोई पूर्व महापौर सरला सिंह से तुलना कर रहा है तो कोई सपा की पूर्व नगर अध्यक्ष आमना बेगम सिद्दीकी से। शहर की ये दोनों महिला नेत्री अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके किस्से लोगों को याद हैं।
89 में UP के पूर्व राजस्व राज्यमंत्री बाबूराम पर सरला सिंह की तरफ से किया गया हमला आज भी लोगों के जेहन में याद है। स्वरूपनगर थाना एरिया में सरला सिंह के तेवरों से तब शहर का जिला प्रशासन भी बैकफुट पर आ गया था।  तब सोशल मीडिया और टीवी मीडिया नहीं थी लेकिन अगले दिन प्रिंट मीडिया में जब ये घटना प्रकाशित हुई तो लोगों की जुबां पर सिर्फ सरला सिंह ही थी। इसके बाद सरला सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और बाद में वह शहर की प्रथम नागरिक (महापौर) बनीं।
महिला पुलिस का घेरा ऐसा रहा कि मानों करिश्मा कोई बहुत बड़ी क्रिमिनल हों। हाथ को पूरे समय पकड़े रहीं महिला कांस्टेबल।

Karishma Thakur युवा हैं और ऊर्जावान भी हैं। सरला सिंह के एक पूर्व करीबी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बेशक इसमें कोई दो राय नहीं है कि करिश्मा ठाकुर में वो तमाम खूबियां हैं जो सरला सिंह जी में थीं। सबके खास कला ये है कि करिश्मा भी सरला सिंह की तरह लोगों को जोड़ रही हैं। चाहे बात करने का अंदाज हो या फिर कार्यकर्ताओं को बुलाने का। काफी हद तक हमें इस लड़की में उनका अक्श दिखाई दे रहा है।

शहर में दूसरा नाम आमना बेगम सिद्दीकी का आता है। आमना बेगम सिद्दीकी भी नब्बे के दशक की चर्चित सपा नेत्री थीं। मुलायम सिंह यादव उनको नाम से बुलाते थे। एक मुद्दे पर उन्होंने नब्बे के दशक में शहर के तत्कालीन एसएसपी की चप्पलों से पिटाई कर दी। बाद में ये एसएसपी सूबे के पुलिस महानिदेशक भी बनें।

ये घटनाएं उन दिनों की है जब शायद करिश्मा ठाकुर ने जन्म भी नहीं लिया था।
4-4 महिला कांस्टेबल करिश्मा के एक हाथ को पकड़े रहीं साथ ही साथ कई दर्जन पुलिस वाले चारो तरफ से घेरे रहे।

करिश्मा को जन्म से मिला घर में राजनीतिक माहौल

करिश्मा को राजनीतिक माहौल जन्म से ही मिला। पिता राजेश सिंह नब्बे के दशक में क्राइस्चर्च कालेज के प्रेसीडेंट बने। आरक्षण आंदोलन में उनकी सहभागिता बढ़-चढ़कर रही। इसके बाद सरसौल से विधान सभा का चुनाव लड़े लेकिन हार गए। कुछ साल कन्नौज लोकसभा सीट से भी राजेश सिं चुनाव लड़े लेकिन दुर्भाग्य से वे वहां भी हार गए। बचपन से पिता राजेश सिंह को आदर्श मानने वाली करिश्मा ठाकुर पिता के ही नक्शे कदम पर आगे बढ़ते हुए छात्र जीवन से ही राजनीति में एंट्री कर गईं। करिश्मा ने लॉ की भी पढ़ाई की है। तीन दिन पहले ही कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें गोविंदनगर विधान सभा सीट से प्रत्याशी घोषित किया। 

राजनीति के जानकारों की मानें तो ये वो समय है जब पूरा विपक्ष कोमा में पड़ा है। केंद्र सरकार और यूपी की योगी सरकार के खिलाफ बोलने का साहस कोई नहीं दिखा पा रहा है। कोई ऐसा नेता नहीं है जो सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल सके लेकिन करिश्मा ने वो भी कर दिखाया। खास बात ये रही कि छात्रसंघ की स्टाइल में वे अपने माथे पर काला झंडा बांधकर निकलीं। जो हिरासत में लिए जाने के बाद ही हटा। 


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