गुजरात के गोधरा कांड के बाद पूरे राज्य में दंगे हुए। करीब 1200 बेगुनाह लोगों की जान इस दंगे में चली गईं। यह सिख दंगों के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा दंगा था। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दोषी लोगों ने  Gujrat High Court में अपील की। मंडे को हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए फांसी की सजा पा चुके 11 दोषियों की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। 


[caption id="attachment_17695" align="aligncenter" width="640"]Godhra_train_case_verdict गोधरा रेलवे स्टेशन के पास 15 साल पहले धू-धू कर जलती साबरमती एक्सप्रेस की बोगियां[/caption]

अहमदाबाद। Gujrat High Court ने मंडे को गोधरा कांड में साबरबमती एक्सप्रेस की बोगियां फूंकने वाले मामले पर अपना अहम फैसला सुना दिया। हाईकोर्ट ने निचली अदालत से फांसी की सजा पाए 11 गुनहगारों की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी। SIT की स्पेशल कोर्ट की तरफ से मामले के आरोपियों को दोषी ठहराए जाने वाले फैसले को चुनौती देने की याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया है। ट्रायल कोर्ट की तरफ से दोषी ठहराए गए आरोपितों की मानें तो उन्हें अभी तक इंसाफ नहीं मिला। जिसकी वजह से सभी ने हाईकोर्ट में अपील की थी।


[caption id="attachment_17696" align="aligncenter" width="680"] गोधरा कांड के बाद पहुंचे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी उनके पीछे खड़े हैं गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी[/caption]

वर्ष 2002 में हुआ था गोधरा कांड

गुजरात का गोधरा कांड वर्ष 2002 में हुआ था। पिछले करीब 15 साल से यह केस चल रहा था। देर शाम तक इस केस में एक और फैसले के आने की उम्मींद है। जिस समय गोधरा कांड हुआ था उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। गोधरा कांड देश ही नहीं बल्कि विदेश की मीडिया में काफी दिनों तक कई वजहों से सुर्खियों में रहा। Gujrat High Court ने मंडे को सुनवाई करते हुए 11 आरोपितों के फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया।

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गोधरा कांड कब-कब क्या हुआ ?

-27 फरवरी वर्ष 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के S-6 कोच में आग लगने से 59 कारसेवकों की मौत हुई थी।

-गुजरात पुलिस ने इस मामले में करीब 1500 लोगों के खिलाफ FIR रजिस्टर्ड की थी।

-गोधरा कांड के बाद पूरे राज्य में जगह-जगह दंगे हुए और करीब 1200 लोग मारे गए।

-3 मार्च 2002 को ट्रेन की बोगियों में आग लगाने वाले आरोपितों के खिलाफ पुलिस ने आतंकवाद निरोधक कानून (पोटा) की कार्रवाई की।



-6 मार्च 2002 को दंगों के बाद गुजरात सरकार ने ट्रेन में आगजनी और उसके बाद हुए दंगों की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया।

-25 मार्च 2002 को केंद्र सरकार के दबाव में 3 मार्च को दंगे के आरोपियों पर लगाए गए पोटा को हटा लिया गया। 

-18 फरवरी 2003 को एक बार फिर सभी आरोपितों पर आतंकवाद निरोधक कानून (पोटा) लगा दिया गया।

- इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई भी न्यायिक सुनवाई होने पर रोक लगा दी।

-जनवरी 2005 में यूसी बनर्जी कमेटी ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि S-6 में लगी आग सिर्फ एक दुर्घटना थी।

-13 अक्टूबर 2006 को Gujrat High Court ने यूसी बनर्जी समिति को अमान्य करार दिया और उसकी रिपोर्ट को भी ठुकरा दिया। 

-वर्ष 2008 में नानावटी आयोग को इस मामले की जांच सौंपी गई और इसमें कहा गया कि साबरमती एक्सप्रेस में आग एक बड़ी साजिश थी। 

-18 जनवरी 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में न्यायिक कार्रवाई करने को लेकर लगाई रोक हटाया।

-22 फरवरी 2011 को स्पेशल कोर्ट ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी करार देते हुए 63 अन्य को बरी कर दिया। 

-एक मार्च 2011 को स्पेशल कोर्ट ने गोधरा कांड में निचली अदालत ने 11 आरोपितों को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा को मुकर्रर किया, जबकि 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई।

-2014 में नानावती आयोग ने 12 साल की जांच के बाद गुजरात दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट तत्कालीन CM आनंदीबेन पटेल को सौंपी। 
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