- 1981- 82 से उप जिलाधिकारी न्यायालय में मामला विचाराधीन
- मइयादीन पर फर्जी अंगूठा लगवाकर जमीन अपने नाम चढ़वाने का आरोप
- सांसद बनने के बाद फूलन देवी जमीन पर कब्जा करवाया था
- फूलन की हत्या के बाद मैयादीन ने फिर से खेती पर कब्जा किया
यमुना नदी के किनारे यही वह खेती है जिसको लेकर कई दशक से फूलन देवी और उनके खानदानी लोगों के बीच विवाद बना है
Dr.Rekesh Dwivedi
बेहमई कांड से काफी पहले फूलन के घर में विवाद Start हो गया था। यह विवाद 1948 में उभरा जो जमीन संबंधी था। बागी होकर फूलन को हाथों में बंदूक तक थामनी पड़ी। फूलन बीहड़ के बागी जीवन से निकलीं तो सियासत की तरफ रुख किया। समाजवादी के टिकट पर वह सांसद बनकर संसद पहुंची। एक दशक पहले फूलन देवी की हत्या कर दी गई। फूलन की जमीन का विवाद जहां का तहां बना हुआ है। हक की लड़ाई अब फूलन देवी के भाई शिवनारायण अपने ताऊ के लड़के मइयादीन से लड़ रहे हैं।
फूलनदेवी यदि बीहड़ पहुंची तो इसके नेपथ्य में यही जमीन जुड़ी हुई है। उस वक्त उसके ताऊ विहारी भी जीवित थे। खुद फूलन के भाई शिवनारायण का आरोप है कि पिता-पुत्र ने षड्यंत्र कर परिवार की लगभग सारी भूमि हड़प रक्खी है।
शेखपुर गुढ़ा में मनफूले निषाद आकर बसे थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार तब उनके पास दो अलग-अलग मौजों में 60 बीघा जमीन थी। मनफूले के बाद जमीन पर कब्जा उनके बड़े बेटे किशोर का हुआ। किशोर के तीन बेटे थे जिनके नाम विहारी, देवीदीन और रामदीन हैं। रामदीन के कोई औलाद नहीं हुई। विहारी ने पूरी जमीन पर जब कब्जा कर लिया तो फूलन देवी के पिता ने देवीदीन ने 1948 में मुकदमा दायर किया। इसकी मुकदमा संख्या 828 और 829 है। 1950 में पूरी जमीन को 1/2 हिस्सों में बांटने का निर्णय हुआ। इसमें करीब 30-30 बीघा जमीन किशोर और गुमान को मिलनी थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका। पूरी जमीन किशोर के बड़े बेटे विहारी के कब्जे में रही।
जब खानदानी विवाद बढ़ा तो एक पंचायत महेवा के अमीन शिवदत्त सहित आसपास के कई प्रभावशाली ग्रामीणों की उपस्थिति में हुई। जिसमें सभी के हिस्सानुसार खेती करने पर राय शुमारी हुई। 1981-82 में चकबंदी हुई। आरोप है कि तब का लेखपाल मइयादीन के प्रभाव में था। इसी दौरान एक व्यक्ति के फर्जी अंगूठा लगवाकर कहलवा दिया गया कि उक्त जमीन मइयादीन की निजी जमीन है। उसे ही यह दे दी जाए। कहा जाता है कि यह अंगूठा देवीदीन का नहीं था। उनकी जगह किसी और से यह लगवा दिया गया था। पूरे खानदान में विहारी और मइयादीन सबसे अधिक चलतेपुर्जा माने जाते थे। इसी का फायदा उठाने की कोशिश हुई। इसकी जानकारी होने पर देवीदीन को झटका लगा पर सरलता वश वह ठीक से इसका प्रतिरोध भी अपने बड़े भाई से नहीं कर पाए।
1988 में देवीदीन का निधन हो गया। फूलन इस बाजी को कतई नहीं हारना चाहती थी। बताया जाता है कि इसको लेकर वह अपने ताऊ से नाराज रहने लगी थी। सांसद बनने के बाद जमीन पर उन्होंने कब्जा कराया पर 2001 में हत्या के बाद जमीन को मइयादीन फिर से जोतने लगे। इसके बाद शिवनारायण ने 2007- 08 में एसडीएम न्यायालय में मुकदमा दर्ज कराकर मइयादीन के नाम के नाम चढ़ी जमीन को चुनौती दी। इस दौरान बुजुर्ग ग्रामीणों की गवाही भी करवाई गई। शिवनारायण का कहना है कि 12 वषों बाद भी न तो जमीन की पैमाइश कराई गई है न ही कोई निर्णय सुनाया गया। यदि जमीन मइयादीन की है तो उसी को दे दी जाए पर कोई निर्णय तो लिया जाए।
6.5 बीघा जमीन पर भी विवाद
नदी के पास साढ़े छह बीघा जमीन है। जिसे भी शिवनारायण पूरी नहीं जोत पाते। कहते हैं कि इस जमीन में भी मइया दीन मुश्किल से 4.5 बीघा जमीन ही जोतने देते हैं। उन्हें अफसोस है कि इस जमीन विवाद में उसकी बहन कहां से कहां पहुंच गई और अभी तक इसका निपटारा नहीं हो पाया।
जेल से ही पक्का किया था अपने सिपाही भाई का रिश्ता
बेहमई कांड के बाद फूलन देवी ने मानसिंह समेत कई डकैतों के साथ 1983 में मध्य प्रदेश के भिंड तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने सरेंडर किया। यहीं से उन्हें ग्वालियर जेल भेज दिया गया था। सजातियों में वह नए रूप में उभरीं। फूलन देवी को देखने के लिए जेल में ही पुरुष-महिलाएं भी पहुंचते थे। इसी दौरान भिंड का एक निषाद परिवार भी फूलन देवी से मिलने पहुंचा। इन मिलने वालों में सरोजनी भी थीं जो उस वक्त कुंवारी थीं। सजातीय जानकर तब फूलन ने उनके माता-पिता से अपने भाई शिव नारायण के बारे में बताया कि वह पुलिस की नौकरी में भी है। माता-पिता तो शादी को तैयार हो गए लेकिन उनसे कुछ ठाकुरों ने विरोध किया। आखिर 1987 में यह शादी हो गई।
खुद न पढ़ पाए लेकिन दोनों बेटों को पढा रहे शिवनारायण
फूलन के भाई शिवनारायण सिर्फ कक्षा छह तक पढ़ें हैं। फूलन देवी के सरेंडर की शर्तों के बाद उन्हें पुलिस के कांस्टेबल पद पर 1986 में नौकरी मिली। तब से वह ग्वालियर के पुलिस लाइन में ही तैनात हैं। वह खुद नहीं पढ़ पाए पर दोनों बेटों को काबिल बना रहे हैं । बड़ा बेटा हरीशंकर आईटीआई कर जॉब कर रहा है तो छोटा बेटा महेंद्र एमबीए की पढ़ाई कर रहा है। पांच तक की पढ़ाई शेखपुर गुढ़ा में तो छठवीं की पढ़ाई मंगरौल में पूरी हुई। इसके आगे की पढ़ाई हालातों ने नहीं करने दी। फूलन की फरारी और फिर बेहमई के घटना ने पुलिस के अत्याचार भी सहने पड़े। शिवनारायण कहते हैं कि वह दिन आज भी अच्छी तरह से याद हैं। पुलिस को देखकर ही हम भाई- बहन सहम जाते थे। उनकी बहन क्यों डकैत बनी...? इसके पीछे एक लंबी कहानी है। वह अपनी छोटी बहन मुन्नी देवी और उम्मेद सिंह की भूमिका को फूलन की हत्या में संदिग्ध मानते हैं।
रूप सिंह जिसका फूलन देवी ने फिरौती के लिए अपहरण किया था
रूप सिंह के लिए तब 25 हजार बहुत बड़ी रकम थी
जगम्मनपुर के रूप सिंह यादव का भी अपहरण 1980 में फूलन देवी ने छह लोगों के साथ किया था। रूप सिंह उस वक्त 18 वर्ष के थे। घरवालों से फिरौती की रकम तो 50 हजार मांगी गई थी लेकिन किसी प्रकार 25 हजार फूलन मान गई थी। यह 25 हजार की रकम भी तब बहुत ज्यादा लगी थी। गिरोह के साथ करीब 15 दिन तक रहे रूपसिंह को तब की तमाम बातें याद हैं। गिरोह उस वक्त जल्दी- जल्दी ठिकाने बदलता रहता था। एक बार पुलिस से मुठभेड़ भी हुई। रूप सिंह जब घर के लिए चलने लगे तो फूलन ने अपनी कलाई से छोड़कर टाइम स्टार घड़ी भेंट में दी थी।
Note----Dr. Rakesh Dwivedi ने करीब दो दशक तक तक अमर उजाला अखबार में डेस्क और मुरादाबाद के साथ-साथ हिन्दुस्तान अखबार में अपनी सेवाएं दी हैं। वह लंबे समय तक हिन्दुस्तान अखबार में ब्यूरो चीफ रहे हैं...वर्तमान में वह "अरविंद माधुरी तिवारी महाविद्यालय" के प्राचार्य हैं।
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