कानून की पढ़ाई ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पूरा करने के बाद कॉर्नेलिया सोराबजी जब भारत लौटीं तो यहां महिलाओं को वकालत की पढ़ाई करने का अधिकार नहीं था। महिलाओं के वकालत की पढ़ाई के लिए उन्होंने लंबे समय तक संघर्ष किया। अंत में जीत उन्हें मिली। आज देश में लाखों महिला वकील हैं। लेकिन कॉर्नेलिया सोराबजी को सच्ची श्रद्धांजलि सिर्फ goole अपने पेज पर उनकी फोटो को लगाकर ही दिया।
YOGESH TRIPATHI
कानपुर। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला अधिवक्ता कॉर्नेलिया सोराबजी को google ने उनके 151वें जन्मदिन पर PHOTO लगा सच्ची श्रद्धांजलि देते हुए उन्हे सम्मान दिया। 15 नवंबर 1866 को जन्मीं का 151 जन्मदिन है। भारत और बिट्रेन में वकालत की प्रैक्टिस करने वालीं सोराबजी की प्रतिमा का अनावरण लंदन के लिंकन में सन 2012 में किया गया था। 6 जुलाई 1954 को उनका देहांत हो गया था।
https://youtu.be/_1crdToFjEI
नासिक में में जन्मीं कार्नेलिया 1892 में नागरिक कानून की पढ़ाई के लिए विदेश गई थीं। सन 1894 में वह भारत वापस लौटीं। उस समय समाज में महिलाएं मुखर नहीं थीं और न ही महिलाओं को वकालत का अधिकार था। कार्नेलिया एक जुनून का नाम था। अपनी प्रतिभा की बदौलत उन्होंने महिलाओं को कानूनी परामर्श देना शुरु किया। इतना ही नहीं उन्होंने महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की माँग उठाई।
बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम की सहायक महिला वकील बनीं
1907 के बाद कार्नेलिया को बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम की अदालतों में सहायक महिला वकील का पद दिया गया। एक लम्बी जद्दोजहद के बाद 1924 में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले कानून को शिथिल कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया। 1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुईं। उसके बाद महिलाओं में इतनी जागृति आ चुकी थी कि वे वकालत को एक पेशे के तौर पर अपनाकर अपनी आवाज मुखर करने लगी थीं। 1954 में कार्नेलिया का देहांत हो गया।
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