लंबे समय से सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर मोर्चा खोल चर्चा में रहने वाले वाले सीनियर IAS सूर्य प्रताप सिंह एक बार फिर  सुर्खियों में हैं। सूर्य प्रताप सिंह ने फेसबुक पर पोस्ट के जरिए UPCM योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार से सवाल पूछा है कि “क्या अब अफसरों को अपराधियों के आगे भी सैल्यूट मारना पड़ेगा ? क्या अब जनपद के SP-DM अब कार्यालय आए अपराधियों से भी चाय-नाश्ता पूछेंगे? दरअसल सूर्यप्रताप सिंह का ये सवाल सरकार के उस निर्देश के खिलाफ है जिसमें अफसरों को जनप्रतिनिधियों से खड़े होकर मिलने और उन्हें प्राथमिकता देने की बात कही गई है।




लखनऊ। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश के बाद मुख्य सचिव राजीव कुमार ने वरिष्ठ अफसरों को एक गाइड लाइन जारी करते हुए कहा है कि अफसर अब जनप्रतिनिधियों से खड़े होकर मिलें, साथ ही कार्यालय पहुंचने पर उनसे चाय-नाश्ते के बाबत भी पूछें। मुख्य सचिव ने पत्र लिखकर अफसरों से कहा है कि वे नेताओं, मंत्रियों, विधायकों और सांसदों का सम्मान करें। उनके प्रार्थना पत्रों को प्राथमिकता से निपटाएं। मुख्य सचिव के इस पत्र पर सवाल उठाते हुए सीनियर IAS सूर्य प्रताप सिंह ने सवाल किया है कि क्या अब डीपी सिंह जैसे अपराधिक छवि वाले विधायकों के सामने भी अफसरों को खड़े होकर सैल्यूट मारना पड़ेगा ?

IAS सूर्य प्रताप सिंह का फेसबुक वॉल से साभार-----


पाँव लगें, VIP ‘श्रीमनके ....... कुर्सीपर चिपके रहने का आशीर्वाद मिलेगा !

अधिकारी कुर्सी छोकर नमस्ते करें,नहीं तो दंडित होंगे.....क्या डीपी यादव जैसे अपराधी या फिर प्रजापति जैसे भ्रष्ट/बलात्कारी को भी ये सम्मान मिले २००७ में यह नियम बना था कि अधिकारीगण विधायकों /जंप्रतिनिधियों को खड़े होकर नमस्ते करेंगे, चाहे वह अपराधी ही क्यों न हो !!

यह सर्वमान्य सत्य है कि सम्मान माँगा नहीं जाता, बल्कि अर्जित किया जाता है (Respect is not demanded but commanded)..... असली सम्मान पद से नहीं, प्रतिभा/सदाचारण से आता है। यदि अच्छा आदर्श आचरण हो तो सम्मान दिल से आएगा ही। सम्मान एकतरफ़ा नहीं हो सकता है बल्कि पारस्परिक होता है। यह नहीं हो सकता कि अधिकारी तो विधायकों का सम्मान करें और जनप्रतिनिधि उन्हें गाली गलौज करें।  पिछले एक दशक में १८ बार ऐसे शासनादेश क्यों जारी करने पडे, यह सोचनीय दिलचस्प विषय है। १४ दिसम्बर, २००७ को पहला शासनादेश जारी हुआ था और अब १७ नवम्बर, २०१७ को मुख्यसचिव को १८वीं बार यह आदेश जारी करना पड़ा कि अधिकारीगण, विधायक के आने पर खड़े होकर नमस्ते करेंगे... जलपान/चाय-नाश्ता भी भेंट करेंगे आदि-२। यह आदेश इसलिए जारी करना पड़ा क्यों कि या तो अधिकारीगण विधायकों का सम्मान नहीं कर रहे या फिर कई विधायकों का आचरण सम्मान योग्यनहीं रहा ? दोनों में से एक कारण होगा ही। आज ४३% विधायक उत्तर प्रदेश में आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। 



वर्तमान सरकार ने VIP कल्चर को समाप्त करने के लिए क़दम उठाए हैं ... लाल/नीली बत्ती हटवाईं हैं, लोगों ने इसका स्वागत किया है। यह सही है कि लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि का सम्मान होना चाहिए लेकिन जनप्रतिनिधीयों को भी अपने आचरण से सम्मान अर्जित करना चाहिए .... ज़ोर ज़बरदस्ती से सम्मान नहीं पाया जा सकता, ख़ाली अधिकारी नमस्तेकी औपचारिकता ही पूरा करेंगे। 

 

मैं जब बदायूँ जनपद में DM था तो मैंने अपराधी विधायक डीपी यादव को NSA में गिरफ़्तार किया था और डीपी यादव ने विधानसभा में मेरी शिकायत की थी कि मैंने उन्हें खड़े होकर नमस्ते नहीं की। इसपर मैंने सरकार को जवाब दिया था कि एक अपराधी/हत्यारे/बलात्कारी को नमनकरना मुझे स्वीकार नहीं।  ‘दुष्टका सम्मान करना दुष्टाताको बढ़ावा देता है। 

 

अभी हाल में NCR क्षेत्र में सर्वोच्च न्यायालय ने दीपावली पर पटाखेबेचने पर BAN लगाया था, लेकिन हुआ क्या ... और अधिक vengeance के साथ न केवल चोरी छुपे पटाखे बिके बल्कि पूर्व वर्षों से और अधिक पटाखे छोड़े भी गए। कभी-२ ज़ोर ज़बरदस्ती का प्रभाव उलटा भी पड़ता है।  मेरे विचार में उक्त शासनादेश की क़तई आवश्यकता नहीं है ..... सबका सम्मान होना ही चाहिए चाहे कोई ग़रीब आमजन हो या फिर कोई विधायक। लोकतंत्र में वोट करने वाला सामान्य जन सबसे बड़ा VIP है .... दोनों अधिकारी व जनप्रतिनिधियों को सामान्य-जनको खड़े होकर प्रणाम करना चाहिए। उक्त प्रकार का शासनादेश VIP कल्चर को बढ़ावा देता है। जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों दोनों का आचरण व प्रतिभा ऐसी हो कि उनके लिए सम्मान दिल से आए। दुर्भाग्य है कि आज लोकतंत्र में आमजन का भरपूर अपमान हो रहा है और जंप्रतिनिधियों/लोगों में VIP बनने की होड़ लगी है। यह शासनादेश न केवल ग़ैरज़रूरी है अपितु अधिकारियों पर ग़लत काम का दबाव बनाने का काम करेगा ...... VIP कल्चर को बढ़ावा देगा और भ्रष्टाचार भी बढ़ेगा।  क्या कहते हैं, आप ??? 
Axact

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