YOGESH TRIPATHI
कानपुर। दस्यु सुंदरी फूलन देवी। करीब चार दशक पहले जुबां पर यह नाम आते ही चंबल का बीहड़ एरिया थर्राता और कांपता था। ग्रामीणों में फूलन और उसके गिरोह का खौफ (खासतौर पर एक जाति विशेष) में इतना था कि वह अंधेरा होने के बाद घरों से नहीं निकलते थे। नाबालिग फूलन के साथ जब जाति विशेष के दस्यु गिरोह सरदार और उसके साथियों ने सामूहिक दुराचार किया। खुद पर हुए जुल्म-ओ-सितम और हैवानियत से आहत फूलन देवी हथियार उठाकर चंबल में कूद पड़ी। विक्रम मल्लाह के फूलन ने अपना गिरोह खड़ा कर कई बार लालाराम और श्रीराम गिरोह से सीधा मोर्चा भी लिया। फूलन उस समय विश्व में चर्चा का केंद्र बन गईं जब उन्होंने लाइन में खड़ा कर जाति विशेष के 22 युवकों को गोलियों से भून डाला था। देश के मीडिया की सुर्खियां तो फूलन बनीं ही साथ ही वह पूरे विश्व में चर्चा का केंद्र बन गईं। BBC हो या फिर टाइम मैग्जीन। सब जगह उस दौर में फूलन ही चर्चा में रहीं।



22 युवकों को लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून डाला

वर्ष 1981 में फूलन देवी ने गिरोह के साथ मिलकर बेहमई गांव में जाति विशेष के 22 लोगों को लाइन में खड़ा कर उनके शरीर पर तब तक अंधाधुंध गोलियां दागती रही, जब तक की सभी की मौत नहीं हो गई। इस नरसंहार के बाद यूपी और देश की सियासत में बड़ा भूचाल आया। वीपी सिंह उस समय यूपी के मुख्यमंत्री थे। फूलन को पकड़ने के लिए यूपी और एमपी पुलिस को लगाया गया लेकिन दोनों ही प्रदेशों की पुलिस फूलन को अरेस्ट नहीं कर सकीं।



PM इंदिरा गांधी की पहल पर अर्जुन सिंह के सामने किया था सरेंडर

22 लोगों का नरसंहार करने के बाद फूलन और उसके गिरोह का आतंक बढ़ता ही गया। पुलिस के साथ फूलन अपने जानी दुश्मन लालाराम और श्रीराम गिरोह से भी मोर्चा लेने से नहीं चूकती थीं। वर्ष 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फूलन को सरेंडर करने के लिए प्रस्ताव रखा। कई दिनों बाद फूलन ने इंदिरा गांधी की बात मान ली और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने गिरोह के साथ सरेंडर कर दिया। जानकारों की मानें तो अपने करीबी साथी विक्रम मल्लाह के मारे जाने के बाद से फूलन आहत थी और इसी वजह से उसने समपर्ण किया।



शर्तों के साथ किया आत्मसमर्पण

इंदिरा गांधी का प्रस्ताव मानने से पहले दस्यु सुंदरी के नाम से चर्चित फूलन देवी ने अपनी शर्तों को भी सरकार के नुमाइंदों से मनवा लिया। फूलन ने इन शर्तों में उसे और गिरोह के किसी सदस्य को फांसी की सजा नहीं दिए जाने के साथ 8 साल से अधिक की सजा न देने की शर्त रखी थी। इन सभी शर्तों को सरकार ने माना तब फूलन ने गिरोह के साथ सरेंडर किया।

बॉलीवुड में फूलन पर बनी थी फिल्म “बैंडिट क्वीन”

कहते हैं कि फूलन देवी से जाति विशेष के लोग बेहद खौफ खाते थे। अस्सी के दशक में हालात यह हो गए थे कि चंबल के कई गांवों से जाति विशेष के लोगों ने पलायन कर लिया था। फूलन देवी पर बैंडिट क्वीन फिल्म भी बनी। हालांकि यह फिल्म कुछ आपत्तिजनक दृश्यों और संवादों को लेकर लंबे समय तक विवादों में रही। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे 11 साल की उम्र में लड़की की शादी 20 के युवक से की जाती है। इसके बाद लड़की के साथ गैंगरेप होता है और बाद में वह हथियार उठाकर चंबल में कूद पड़ती है।
अत्याचारियों से न सिर्फ बदला लेती है बल्कि 11 साल तक जेल में जीवन बिताने के बाद जब बाहर निकलती है तो लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर (संसद) भवन में भी पहुंचती है वह भी बतौर सांसद।



मुलायम सिंह ने दिया था सपा से टिकट, मर्डर के बाद कंधा भी दिया

वर्ष 94 में फूलन देवी जेल से रिहा हुई। साल 1996 में समाजवादी पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह ने फूलन देवी को मिर्जापुर सीट से लोकसभा का टिकट दिया। मिर्जापुर लोकसभा का एरिया निषाद बाहुल्य माना जाता है। फूलन यहां से चुनाव लड़ीं और भारी मतों से जीतकर संसद पहुंची। फूलन देवी की मौत के बाद उनके जनाजे को मुलायम सिंह यादव और कभी उनके बेहद करीबी रहे अमर सिंह ने खुद कंधा दिया था।



जातिगत भेदभाव का शिकार हुईं फूलन देवी

बीहड़ में बागी जीवन से लेकर संसद तक का सफर करने वाली फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त, 1963 को यूपी के एक छोटे से गांव गोरहा के पुरवा में हुआ था। कानपुर देहात से सटे यमुना पट्टी के गांव में पैदा हुई फूलन बेहद गरीब परिवार की थीं। खुद फूलन ने भी कहा, “जातिगत भेदभाव” और सामूहिक दुराचार के साथ कई अन्य बर्ताव भी उनके साथ किए गए। जिसके बाद उन्होंने बंदूक हाथ में थाम ली। अत्याचार करने वालों से बदला लिया।



संसद भवन से कुछ दूरी पर दिनदहाड़े हुआ था मर्डर

दिल्ली में संसद भवन से महज कुछ दूरी पर स्थित फूलन देवी के बंगले पर उनकी हत्या की गई। हत्या का इल्जाम लगा शेर सिंह राणा पर। कहते हैं अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय बीहड़ के जंगलों में व्यतीत करने वाली फूलन देवी के लिए दिल्ली का आलीशान बंगला काफी अशुभ साबित हुआ। कातिल शेर सिंह राणा ने उसी बंगले में फूलन पर ताबड़तोड़ गोलियां दाग सनसनीखेज मर्डर किया।
फूलन देवी की हत्या के बाद पकड़े गए शेर सिंह राणा ने हत्या का जुर्म स्वीकार करते हुए कहा कि उसने 1981 में बेहमई कांड में मारे गए जाति विशेष का बदला लिया है।
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